श्री एकनाथ चरित्र | Shri Eknath Charitra

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Shri Eknath Charitra  by लक्ष्मण नारायण गर्दे - Lakshman Narayan Garde

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ६५ ॥| और पीछे उनके सदाचरणसे मुग्ध होकर उनके भागवत गन्थ- का जयजयकार किया; इसोमें फिर दासोपन्‍त और नाथकी सेंट, नाथको छानेदवर महाराजके दश्शनोका काम सौर गावचा- का चरित्र वर्णित हुआ हे! ग्यारहवे ध्याय उनकी सन्ततिका वणैनकर उनके नाती सुक्तेदवर ओर पु दरिः पण्डितका परिचय करा दिया हे । नाथ ओर दरिपण्डितमे परस्पर विरोध ओर फिर मेल केसे हुआ यह बतलाकर नाथके निर्याणकालका वर्णन किया है और वारहयेंम नाथकी वड़ाई वड़ोने केसे बखानी है यह बतलाया हे 1 ये सव वाते, ये वारह अध्याय पढ़नेसे अच्छी तरहसे मात्दम होगी । गृहस्थाश्रममे रहते हुए एकनाथ महाराजने अपनी ब्रह्मस्थितिकी अखण्ड रखा । नाथका-सा मनोहर चरित्र नाथका ही है । इसकी कोई दूसरी उपमा नहीं । श्री क्षेत्र पेठणमे मैं पन्द्रह दिन रदा, शस घीच जो चातें मालम हुई उनसे भी इस चरित्र-लेखनर्म सुझे बड़ा लाभ हुआ। में इस चरित्र-मालाको उपयुक्त भावुक, रसिक, और चिकित्सक तीनोके प्रधान गुर्णोका बदर कस्ते हुए. तेयार करनेवाला हूँ । कार्यारस्म हो गया है और हेतु यही है कि हरि; दरिसक्त और हरिनामके विषयमें अपना ओर अपने पाटकोका प्रेम यर आद्र बढ़े और सन्‍्त-चरित्रके द््पेणमें अपना निजरूप हम लोग देख सके। आत्म-शुद्धिका इसके सिवाय और कोई दूसरा साधन मुञ्चे नहीं दिखायी देता। रवण, मनन सौर निदिध्यास सवका फर सन्तेकि संगसे प्राप्त হীনা दे। सन्तौका गुणगान जीवको भिय देः




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