आविष्कारो की सच्ची कहानी | Aaviskaro Ki Sachi Kahani

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Aaviskaro Ki Sachi Kahani by सुनीति देवी - suniti devi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विचार मुद्रित रूप में विश्व पंजी) रखा गया, परन्तु बाद में १७८८ से इसका नाम बदल कर 'टाइम्स' कर दिया गया । सारी उन्‍्तीसवीं शताब्दी में छपाई से सम्बन्धित आविष्कारों की एक समूची श्रृंखला इस 'टाइम्स' के द्वारा ही प्रचलन में आई । सन्‌ १८१२ में एक दिन जौन वाल्टर द्वितीय को, जो टाइम्स के संस्थापक का पुत्र था, उसके एक मित्र ने व्हाइट ऋस स्ट्रीट में एक कारखाने में बुलवाया, जिससे वह्‌ गुटेनवगं के कालके बाद से छपाई की कला में हुई महानतम प्रगति को देख सके । वहां जो कुछ उसे देखने को मिला, वह एक सर्वप्रथम व्याव- हारिक यांत्रिक मुद्रण यब्ज का प्रदर्शन था । यह मुद्रण यन्त्र वाष्प' की शक्ति से काम करता था । । इस मशीन का आविष्कारक जर्मनी का रहने वॉला मुद्रक फ्रैेडरिख कोनिग था । वह इंग्लेंड इसलिए आया था, क्‍योंकि इंग्लैंड में पेटेंट के कानून जर्मनी में प्रचलित कानूनों की अपेक्षा आविष्कारक के हितों की रक्षा कहीं भ्रधिक अच्छी प्रकार करते थे। जरमनी उन दिनों दो दर्जन उपराज्यों में बंदा हुआ था और उनमें से किसी एक में कराये गये पेटेंट का अ्रन्य उपराज्यों मैं कोई मूल्य नहीं होता था। कोनिग को उसके आविष्कार में पेसा लगाने के लिए एक व्यक्ति, वेन्सले, सिल गया 1 एक कुशल जर्मन कारीगर फंडरिख बौग्रर भी उसका साथी बन गया । বন্য জ্বী सहायता से कोनिग श्रौर बौग्रर को जौन वाल्टर से यह ठेका मिल गथा कि वे 'टाइम्स! और “ईवनिग मेल' के लिए दों दुृहरी छपाई की मशीनें बना कर दें। बेन्सले ने इन




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