उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन | Uttaradhyayan-Sutra : Ek Parishilan

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Uttaradhyayan-Sutra : Ek Parishilan by सुदर्शनलाल जैन - Sudarshan Lal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उ० = उतत्तराघ्ययन उ० आ० टी० = उत्तराध्ययन-आस्माराम-टीका उ० घा० टी० = उत्तराध्ययन-घासीलाल-दीका उ० तु० = उत्तराध्ययन-आचाययं तुलसी उ० नि° = उत्तराघ्ययन-निर्णुक्ति उ० ने० टठी०=उत्तराध्ययन-तेमिचन्द्र-टीका उ० शा० =उत्तराध्ययन-शापेंन्टियर उ० समी ० =उत्तराध्ययनः एक समीक्षात्मक्‌ अध्ययन के० लि० जे ० = हिस्टरी आफ दी केनौनिकल लिटरेचर आफ दी जैन्स कं ० जै ० =जैनघमं-केलाशचन्द्र गो० जी ० = गोम्मटसार-जीवकाण्ड जे० লও == देखिए-कं ० ज० जे० भा०स०=जैन मागम साहित्य मे भारतीय समाज जे ० सा०इ० पू० = जैन साहित्य का इतिहास : पूवंपीठिका जे° सा० व° इ० जैन साहित्य का बृहद्‌ इतिहास डा० जे ० > डॉक्ट्रिन ऑफ दी जैन्स तके सं ० --तर्कसंग्रह त० सू० = तत्वार्थसूत्र द० उ० = दशवेकालिक तथा उत्तराधष्ययन (आचार्य तुलसी) ¶० = पृष्ठ परि० = परिशिष्ट




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