फुल बूट | Ful boot
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
122
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १४ )
इसके जवाब में मैं उन्हें इतमीनान दिलाता कि मैं उससे अब
जाकर कह देगा और जाकर कह भी देता जिससे मिस सिंह को मालूम
हो जाय, कि यह मरीज भी मेरे हो कारण मिला है। फिर सचमुच जो
न दे सकता, और जरूरत हुई और मुहल्ले वालों ने सिफारिश भी की
तो में गॉठ से फीस देकर इलाज करा देता, या इस तरह कि किसी
मरीज के साथ-साथ उसे भी दिखा देता | |
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रत् श्राप स्वय सोचिये, किं जब इस तरट मेरे मार्फत मुहल्ले का
সুজা इलाज कएने लग जाय, तोहफा का बाजार गरम रक्वा जाय,
दिन में दो वार की जरूरत हो तो मैं चार बार जाऊं, शिकार करके
लाऊँ तो सब॒ के सत्र मिस सिंह के यहाँ मेजवा दूं और वह भी खुशी
स कवूल करले तो दोस्ती मे कसर हौ क्या रह गई । इसी को दोस्ती
कहते ह । नदौ तो दोस्तों के सिर पर क्या सौग निकले रदते हैं !
फिर विचार करने लायक बात यह है कि मिस सिंह की नजरों
मे मेरी कितनी इज्जत बढ गई | इस तरह वे लैस मुहल्ले मर का काम
करने वाला, और स्वय कुं लेना न देना, उपर से मेहरवानियों करने
वाला उसे कोई दूसरा तो मिल न सकता था। धीरे धीरे सम्बन्ध
बढ़ता ही गया। यहाँ तक नौबत आ पहुँची कि एक दिन जब मैं
पहुँचा तो चाय पर से उठकर आई और मुझे लेजाकर चाय
पिलाई । यह एक ऐसी घटना थी जिसने साब्रित कर दिया, कि मिस
सिंट का दोस्त नहीं तो कम से कम मिलनेवाला जरुर हूँ |
चाय वाले दिन से वास्तव में बनावट कुछ कम हो गई | क्योंकि
चाय के सिलसिले में कुछ इधर-उधर की बातें भी हुई ।
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