फ़्रांस की दो आँखें | Frans Ki Do Ankhen
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
124
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कर क्लेमॉशो को उस दृद रती समुदाय से मिलत देर न लगी)
वह जीवन से उदासीन न था, फिर भी होटेल श्रौर रेस्तोररो के
आनन्द मनोरञ्जन की शपेद्त। देज्ेसतेर के कला भवनमे ही
उसका समय अधिक व्यतीत दोता जहां की वायु भी षडूर्य॑त्र की
श्वास निशयास बनकर डोकती रहती थी। यद्दा को नवयुचक
मण्डली क्लेमॉशो के उप्र चिचारों से अत्यन्त प्रभावित थी और
इसे कुछ चुने हुये मित्रों के साथ यहीं अपनी सर्वेत्थम राज-
सैत्तिक घोषणा तैय्यार की, उस घोषणा मे तरुण आवेश का
ही क्धिकतर समावेश हुआ था उस इतिहासिक रचना का
मुख्य वाक्य धा--“जिसके लिये हमारे पास सैद्धांतिक आधार
नहीं, उसे हम कभी व्यवहार से नहीं ला सकते जस््म, मृत्यु,
विवाह--किसी समय भी पुजारी की शरण में जाना हमारे
কিউ নজির ই: _” परिणामतः “विचाराजुकुल कर्म संघ”
की स्थापना हुई जिसका “उदेश्य था न्याय श्रौर् नियम था
विद्वान” | बडी मनोरज्ञक वात है कि आगे चलकर इस घोषणा
ने स्वयं उसी के घिवाह से विघ्न उपस्थित किया ॥
घोषणा पर हस्ताक्षर कर चुकने के पश्चात् प्रत्येक फ्रॉसीसी
विद्याथी का कर्तव्य हो जाता था कि किसी समाचार पत्र की
সি क्लेमॉश
१८६२ १० स्थापना कर । स्वमावतः गो ने भी
नले टेवेलः ( 16 {78५४211 } को जन्म दिया ।
वारतब मे पललेपोशो का सम्राम यहीं से प्रारम्भ होता है। उसने
श्राजीदन समाघार ঘল জ্বী श सान कर ही अपनाया, ठीक
जसे एक सैनिक वदृवः सभालता है । प्तेमोधो के भाषणों मे
रणभूमि वी भाद्ार है, उसके शब्द कोप गे श्छंति की भावनायें
भरी ६। सेसर' दे; चगुल से वचे रहने के लिये डसने साहित्य,
पतिम, कला प्यार विज्ञान की साड लेकर शले ट्रेवेल' मे
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