हिंदी साहित्य : एक अध्ययन | Hindi Sahitya : Ek Adhyayan

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Hindi Sahitya : Ek Adhyayan by रामरतन भटनागर - Ramratan Bhatnagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रादि युगः १३ नहीं था परन्तु धीरे-धीरे बहुत से काम ठुच्छु और हीन समभे जाने लगे। इस युग के मध्य में राजपूतों के प्रादुभाव के कारण युद्ध में काम आनेवाले वर्ग श्र्थात्‌ আলী ন্ট की प्रतिष्ठा सबसे बढ़ गई । मुसलमानों के प्रवेश के समय तक स्पश्य--अस्पश्यं का प्रश्न महत्त्वपूर्ण हो गया यथा ` ओर विवाह आदि सम्बन्ध धीरे-धीरे बहुत ही सकीण क्षेत्र में होने लगे थे | इस युग के अन्तिम वर्षों' में यह संकीर्णता एक ओर विदेशी ` जाति के प्रति बद्री श्रौर हिन्दू-मुसलमानों के बीच में एकं दीवार की भोति खड़ी हो गई ओर दूसरी ओर इसने आपस ही में वर्गोकरण की भावना को उत्तेजना दी। यह नवीन धम से संघष की प्रतिक्रिया थी। शासक- धर्म होने से इसके मोह से बडी हानि की सम्भावना थी, इसलिए, अपने दल को लेकर वबंचकर चलने ओर नये धर्मावलम्बियों के सामाजिक बहिष्कार की योजना हुई जो अभी तक किसी न किसी रूप में चल रही है । इसका लाभ यह हुआ कि उस आपत्ति काल में भी हिन्दू सस्क्ृति सुरक्षित रह सकी । परन्तु इस विरोध के भावने सदा के लिये राष्ट्रीयता के समथकों के सामने एक समस्या उवन्न कर दी । इस युग के अन्त होते-होते दोनों जातियों के बेघम्य और द्वेष को दूर करने का प्रयत्न हो चला था। 'काफिरबोध? का एक पद्म “हिन्दू मुसलमान दोनों खुदा के बन्दे | हम जोगी न रहें काहू के फन्दे? गोरखपन्थियों द्वारा किये गये इस प्रयत्न की ओर इशारा करता है। इस दिशा में भक्तिकाल के प्रारम्भ के सन्त कवियों और सूफियों ने विशेष प्रयज्ञ किया । भाषाओं को स्थिति इस युग के प्रारम्भे संस्कृत प्राङ्ृत ग्रौर अपश्र श भाषाएँसाहित्य के लिए, प्रयुक्त हो रही थीं । सस्छृत ग्रौर प्राकृत के विद्वान्‌ राजदरबारों से सम्बन्धित होते थे | अ्रपश्र श का साहित्य जनता में शुरू हो रहा था। श्रागे इसका बहुत विकास हुआ । इसी अपभ्र श से वर्तमान काल की साहित्यिक और प्रादेशिक भाषाओ्रों की उत्तत्ति हुईं है | इस प्रकार अपभ्र श से कुछ मिला-जुला रूप इस समय की हिन्दी का मिलता है | यह मिश्रित रूप १४०० तक चलता है। इसके बाद भी अपमश्र श में कुछ ग्रन्थ अवश्य लिखे गये परन्तु हिन्दी उसके प्रभाव से छुट गई थी और स्वयम्‌ उसका विशाल साहित्यिक ब्रज और अवधी के दो प्रधान रूपों में बनने लगा था । साहित्य की स्थिति इस काल में मौलिक रचना बहुत थोडी हई र । अधिकतः पूवंलिखित




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