आर्थिक विकास की दशाएं | Aarthik Vikas Ki Dishaye

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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10 श्राधिक विकास की दिशाएं पुरानी बातो के प्रति लगाव । इस प्रकार आदिकालीत येषगासानौ एक मरति से सम्बद्ध हो जाती थी जो उस टेवनालाजी में परिवर्तेत की झ्वरोधक हो जाती थी। एक झमाता था जब कि इग बात पर जोर दिया जाता था कि पिछड़े देशो के श्राथिक विकास वे रुक जाने का मुख्य कारण उपलब्ध वचत का अम्नाव है। यह बताया जाता था कि दरिद्रता के कारण वचत करना कठिन है ओर वचत तथा पूजी के न होते के कारण दरिद्रता को समाप्त करने का कोई तरीका नहीं है। पूजी लगाने के लिए अतिरिक्त धन के ग्रमाव के कारण दरिद्रता के द्वारा दरिद्रता के उत्पन्न होने के दुश्चर कौ व्याख्या का एक तरीका यह है। परतु इस वक्तव्य मे पारम्परिक समाजों के विषय में सारे तभ्य शामिल नही हो जाते क्योकि इन समाजो भे कुछ अतिरिवत घन होता जरूर है। इत समाजो ম से भ्रधिकाश मर एक पारम्परिक अभिगात वर्ग होता है जिसमे सुप्रकट रूप से उपमोग की तीद प्रवृत्ति होती है। महत्वपूर्ण मारा मे बचत था उपभोग न करवे की भ्रशृत्ति भी होती है जिरको अहरहाल पृजी निवेश नहीं कह राकते क्योकि दरार देश की उत्पादक परिसम्पत्ति मे कोई वृद्धि नही होती। उदाहरण के लिए काफी मात्रा मे वचत मूल्मवान घातुग्रो के रूप मे होती है। स्मारक घोर मदिर, इस प्रकार के समाजो हारा ठुरत उपभोग को छोड़कर अत्य कार्यों के लिए ससाधतो को ध्रलग रख देने की क्षमता को भ्रमाणित करते है। इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि ऐसी अतिरिवत पूजी तो ग्रवश्य है जिसका निवेश क्या जा सकता है परतु जिसे उत्पादक कार्यो मे लगाया नहीं जाता |आविक और सास्क्ृतिक बातो रा एक ताथ अध्ययन करते से ही इस प्रत्र की व्याक्या सम्मद हो राबती है। परिशिष्ट रीतिविधान पर एक सक्षिप्त विपयान्तर मस्थापित प्र्थशास्त्र के उद्भव के वाद ग्रबश्ास्त मे रीतिविधात के प्रएन पर एक बहुम चल पड़ी | यह बहस जो बहुत भरसे तक चलती रही 19वी शताब्दी के प्रतिम पच्चीस वर्षों के प्रारम्भ में विश्येप तौद् हो गई थी और उसकी प्रतिध्वनि आज तब भी महपूस की जा सकती है। एडम रिमथ को पुरतक <द बेल्थ प्राफ गेशन्स में जिसे प्रायिक व्छडेपन के कारणा ग्रौर रादिकं विकाम के सम्वन्व मे सवस पहता मोर्‌ श्रत्यन्त भूषय विवेचन माना जाना उचिग है मिदधान्ने मौर इतिहास का झदमुद्र मेल है। इस प्रकार, तीसरे खण्ड के लिखते सम्रय एडम स्मिथ ने विभिन्‍न राष्ट्रो मे धत सम्पर्ति को पृथक पृथक्‌ उन्दति वाले अध्याय में प्राथिक इतिहास को महत्वपूर्ण स्थान दिया है। परतु भ्रन्यत्र खाम तौर से ब्रधय खण्ड के उग भागी में जहा वह वस्दुग्रों के श्राकृतिक आर বালা भाव के बारे मे सिद्धान्त निर्धारित करने की कोशिश करता है, वहा इतिहास का




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