मार्क्सवाद और साहित्य | Markswad Aur Sahitya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
243
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२४ माक्सेचाद और साहित्य
उत्पादन-सम्बन्धों के साथ, अथवा फानूनी भाषा में कहा जाय
तो कह सकते हैँ कि ये सच उत्पादन शक्तियाँ ज्ञिन सम्पत्ति-
सम्बन्धो (एन 7०86००७) से प्ते कास करती च्रायी
हैं, उनके साथ संघष कर वैठती हैं | उत्पादन शक्तियों के विकास
के साधन (६००18) ল रह कर ये सम्बन्ध उनके बंधन मे परि
शत दो जतत हँ । वच समाचविप्लव छा युग शुरू होता है।
अरथनीतिक बुनियाद में परिवर्तेत के साथ द्वी साथ ( उसके
ऊपर वना हुआ ) समग्न प्रकांड ढाँचा (या महत्त ) थोड़ी बहुत
शीघ्रता से रूपान्तरित हो जाता है। इस प्रकार रूपान्वर के
बारे में विचार करते समय, उत्पादन की अथनोतिक दशा का
भौतिक रूपान्तर (जो प्राकृतिक विज्ञान की तरह निश्चयता के
साथ निर्धारिव हो सकता है ) और बेध, राजनीतिक, धार्मिक,
कलासम्बन्धी अथवा दाशनिक रूप--संज्षेप मे वे सब भावरूप
( मानस रूप -100)०९208) {07८5 ) जिनको सदायत्ता से
दोग इख संघं के बारे मे सचेतन दोकर इसके विरुद्ध संग्राम
करते है, इन दोनों में हमेशा पार्थक्य रखना चाहिए। कोई
व्यक्ति अपने बारे में जैसा ख्याल करता है उसके द्वारा जिस
प्रकार हम उसके बारे में मतासत नहीं बनाते, ठीक उसी तरह
इस प्रकार के रूपान्तर-युग के बारे में भी उस थग की आत्म-
चेतना के द्वारा हम उसका विचार नदीं कर सकते, वरन दूसरी
ओर, भौतिक जीवन के विरोधों के द्वारा, उत्पादन की सामाजिक
शक्ति और उत्पादन सम्बन्धो मँ जो विरोध वतमान है उनके
द्वारा इस चेतना की व्याख्या करनी होगी | जिन सच उत्पादन
शक्तियों के विकास का अवकाश समाज व्यवस्था में विद्यमान
हैं, उन उत्पादन शक्तियों के विकसित न होने तक कोई समाज
“व्यवस्था फभी भी नष्ट नहीं होती, और पुरानी समाज़ग्यवस्था
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