भातूलियो | Bhatooliyo

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Bhatooliyo by कृष्ण कुमार कौशिक - Krishna Kumar Kaushik

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मांह बड़तांई साहजी पूछयो' के, “आपरे कार खड़ी करण মাফ गैरेज कोनी कांई ?” छोटियो सकपकायो । पण सम्हक्क'र बोल्यो' कै, “अरब तांई तो कार ही कोनी ही जद मैरेज को कांई करता । अबके कार ক্যান হী सला भी है अर गैरेज वणावण री भी 1/ “वण बणास्‍्यों कठे ! मकान मांय तो जाग्यां ही कोनी दीसे ।/ আনা শীষ पूछयो। ओ तुड़ी आछो कोठो तोड़र बणावांला।” छोटिम फेर पलटो खायो । कमरे माय वैट्या' कं चाय नास्ता री सजावट मेज पर हौवण लागमी 1 देख र साहजी बोत्या, “पैलां ठावर देखस्या, चाय फेर पीवाला 1 “टाबर तो दिखावणों ही हे, पैली कीं सुसता व्यो, चाय-पाणौ पील्यो, इत्ती के जल्दी है ?” बिचोटियो बात में सारो लगावण खातर बोल्यो । “जल्दी तो कीं कोनी, पण जि काम आया हां; वो पैले, थी म्हारो दस्तूर है ।” साहजी आपरी बात ऊँची राखी । “छोरी म्हारी सूओ बरगी है, अभी दिखा देवां |” छोटियो, विचोटिये ने बठेई बिठा'र माय गयो । सारे घर रा गैणा पैरा'र लद॒-पद करयोड़ी सुमनड़ी ने बारले कमरे तांई ल्यार खडी कर दी। छोरी को पड्चोड़ी ही, होवण भाषो सुसरो জাম पां धोक खाई । पण साहजी रे दिमाग तो कार र॑ गैरेज स्यूँ सेठां रो सटंडड़ं घूमें हो। चाय रो आधो सो कप लियो अर बो'ई की বনী सो कर'र छोड़ दियो । मिठायां ने हाथ ही नी लगायो। ही ज्यू री ज्यू पड़ी रहि। छोटियो मायली बात ताड़स्यो । बोल्यो, 'थांने साहजी, म्हारो कार क्र गैरेज स्थू कांई लेगो-देणो है ? बायली म्हारी सूरज बरगी है। दस तांई पढ़ियोड़ी है। घिलाई, कढाई अर बुणाई माय चतर है। तीन बड़ा परयावो / 15




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