अपने विषय में टिप्पणियों और पत्रों से संकलित खंड 19 | Apne Vishay me Tippaniyon Aur Patron se Sankalit Khand-19

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Apne Vishay me Tippaniyon Aur Patron se Sankalit Khand-19 by श्री अरविन्द - Shri Arvind

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पांडिचेरीसे पहलेका जीवन प्र यदि ऐसी बात है तो यह कोई अचेतन प्रभाव ही होगा; क्योंकि आरंभिक वाल्यकालके वाद भैकालेकौ कविता (116 1.25) का आर्पण जाता रहा। “जैकोवाडद्‌स॒ एपीटाफ' (14000116 छप) जायद नैन दूसरी वार भी नही पढ़ी; इसमे मनपर कोई छाप नहीं डाली । सर हेनरी काटनका श्रीअरविन्दके नाना मह॒पि राजनारायण बोससे बहुत मेल-जोल था । उनके पुत्र जेम्स काटन इस समय लन्दनमें थे । इन अनुकूल अवस्थाओके फलस्वरूप वडौदेके गायकवाडसे भेट हई । काटन मेरे पित्ताजीके मित्र थे --- उन्होंने मुझे बंगालमें नियुक्त करानेका प्रबंध कर लिया था; परन्तु गायकवाड़के साथ मेरी भेंट होनेमे उनका कोई हाथ नहीं था। जेम्स काटनका मेरे बड़े भाईके साथ खूब परिचय था, क्योकि दक्षिण केसिग्टन लिचरल क्लवके, जहां हम रहते थे, वे मंत्री थे और मेरे भाई उनके सहायक ये । वे हम दोनोंमें बहुत दिलचस्पी लेते थे। उन्दीने गायकवाड़से मेरी भेंट कराई थी। चौदह वर्षतक युवक श्रीअरविन्द अपने देशकी संस्कृतिसे विच्छिन्न होकर इंग्लैण्डमें रहे थे और अपने-आपसे प्रसन्न नहीं थे। वे चाहते थे कि सब कुछ नये सिरेसे शुरू करें और अपनेको फिरसे राष्ट्रीय बनानेका यत्न करें। इस कारण किसी पभ्रकारकी अप्रसन्नता हो यह बात नहीं थी, न उस समय जान-वूककर अपनेको पुनः राष्ट्रीय वनानेकी कोई इच्छा ही थी -- ऐसी इच्छा तो, भारत पहुँचनेके वाद, भारतीय संस्क्रती और जीवन-अ्रणालीके प्रति सहज आकर्षण तथा सभी भारतीय वस्तुओंके लिये स्वभावगत संवेदना और अभिरुचि होनेके कारण पैदा हुई थी। वे इंग्लैण्डसे विदा ले रहे थे, विदा लेना चाहते थे, और फिर भी विदा लेनेका विचार आत्ते ही उन्हें अनुताप भी अनुभव होता था। अवर्णनीय 'संदेहों और संतापोंसे उनका चित्त कांपने लगता; काव्य- रचनाका आश्रय लेकर उन्होंने उनसे छुटकारा पाया।




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