भारत का संगीत सिध्दान्त | Bharat Ka Sangeet Siddhant

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Bharat Ka Sangeet Siddhant  by कैलासचंद्रदेव बृहस्पति - Kailaschandradev Brihaspti

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about कैलासचंद्रदेव बृहस्पति - Kailaschandradev Brihaspti

Add Infomation AboutKailaschandradev Brihaspti

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
विस्तृत विषय-सूची भूमिका শপ प्रावकथन अनुसन्धान की प्रेरणा--अनुसन्धान-सग्बन्धी समस्याएँ और निष्कर्प -आचीन सल्भीतश्षास्त्र की दु्बोधविता और उसके कारण--प्रचलित सज्भजीत-पद्धतियो में रस-भाव के प्रति उदासीनता--अनुसन्धान' के आधार--प्राचीन सम्प्रदाय--भरत-सम्प्रदाय की नाट्य-शास्त्रगत विशे- पताएँ---उपलब्ध नाट्यशास्त्र---भरत एवं आदि भरत--आदि नाट्य- शास्त्र--भरत-सिद्धान्तो पर विदेशी प्रभाव [--मह॒षि भरत के स्वर ओर आधुनिक भौतिक विज्ञान--ग्रन्थ कौ शैली--कतज्नता-जल्ञापन । -२१-५८- प्रथम अध्याय आप्त वाक्यो को हृदयज्भम करने के लिए विशेष दृप्टि--विद्या का अधिकारी--प्राम, स्वर, श्रुति--मण्डल-प्रस्तारों में पड़जग्राम एवं मध्यमग्राम--नवतन्‍्त्री पर षाड्जग्रामिक स्वरो की सिद्धि, नवतन्‍्त्री पर भरतोवतत स्वर-व्यवस्था--मध्यमग्राम--सितार पर षाडजग्रामिक सप्तक की सिद्धि--श्रुतिनिदर्शन या श्रुतिदर्शन-विधान--भरतोवत चतु: सार- णाएँ--लेखकनिर्मित यन्त्र श्रुतिदर्पण! पर चतु सारणाओ की सरलूतम विधि--श्रुतियो के परिमाण--सप्तक में श्रुतियों का क्रम एवं उसकी महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ--श्रुतियों के विभिन्न परिमाणों के भेद में अन्तर जानने की भारतीय विधि । “(०३ ३े- द्वितीय अध्याय मूच्छेवा की व्युत्पत्ति एवं छक्षण--मूच्छेना की चतुविधता के सम्बन्ध में दो दृष्टिकोण---ग्रामद्रय की मूच्छंनाओ का रूप--आ्रामहय-मूच्छेता- बोधक श्रूतिपरिमाणयुबत मष्डल-प्रस्तार--ग्रामदय-वोधक सारणी- ताने--दोनो ग्रामो में अविकोपी स्वर--मूच्छेनाओ का प्रयोजन, पूर्वा-




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now