श्री भागवत दर्शन खंड 20 | Shri Bhagwat Darshan Khand 20

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भागवती कथा, खण्ड २० ` १५ पीछे पश्चात्ताप होता है, फिर उसी काम को करते हैं।। यदि भगवान्‌ हमारे इन निन्‍्य कर्मों को देखकर हमें ठुकरादें , तब हमारा कहाँ सहारा हो न रहे। नीच, पापी, निन्‍दक, व्यभि- चारों आदि होने पर भी भगवान्‌ के इन वचनों से बड़ा सद्दारा मिलता है कि 'कैसा भी पाप क्‍यों न दो एक बार भेरी शरण में आने पर में उसके सब पापों का नाश कर देता हूँ ।? हदय मे उनके प्रति अनुराग हो ओर पापों में प्रद्नत्ति भी हो जाय, तो भगवान्‌ स्त्रयं हो! किसी न किसी रूप में उसे छुड़ा देते हैं। गोस्वामो तुलसीदास जी के हृदय में उमकी भक्ति थी साथ ही विषयों में भी आसक्ति थी। भगवान्‌ ने उनको स्त्री से हो उन्हें उपदेश दिला दिया। ऐसे अनेकों उदा- हरण हैं, कि जो पहिले अत्यन्त विषयी दुराचारी थे पीछे अगवत्‌ कृपा से थे बड़े ऊँचे भगवत्त्‌ भक्त हुए। मैंने ऐसे बहुत से बड़भागी भक्तों के दशन किये हैं । ' पहिले में गंगा किनारे क्रिनारे' कुछ भी समीप न रख कर चनावटो स्यागी की मँति घूमा करता था 1 यद लगमग १६१७ चर्प पहिले को मैं वात बता रहा हूँ, एक वार' चलते चलते कानपुर से बहुत दूर निकल ` गया। अब उस स्थान काः नाम तो मुमे याद रहा नहीं, किन्तु उसका चित्र अब लिखते समय ५ ज्यों का त्यों मेरी आँखों के सामने नाच रहा है| गंगा जी के किनारे पर दी जीं शीणं सा ` शिव मंन्दिर था | उससे, कछ




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