हुंबुज श्रमण सिद्धान्त पाठावलि भाग 4 | Humbuj Shraman Sidhanth Patavali Bhag 4

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Humbuj Shraman Sidhanth Patavali Bhag 4  by लल्लूलाल जैन - Lallulal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| জাবি হব शुभकामनाएँ. झाशीर्वाद एवं शुभकामनाएँ | विश्वधर्मप्रवक्ता विद्यालंकार श्री १०८ श्राचायं स्थिवर संभवसागरजी महाराज का मंगलमय शुभाशीवदि मुभ यहं जानकर प्रसन्नता है किश्रौ दिगम्बर जन कृ थूविजय म्र यमाना समिति के चतर्थ पुष्प “हुम्बुज श्रमस्य सिद्धान्त पाठावलि” का प्रकाशन हो रहा है। स्तोत्र सस्क्ृत में है, तो भी समस्त साधुवम व जन समाज मे पहुँचने से निश्चित ही लाभ मिलेगा । जिसका सम्कृत नही भी गब्राती तो उस रोज सुनकर धारण तो अवश्य ही हो जावेगी । बहा गया हैं कि एक बूढ़ी मा रोज भक्तामर का पठ सुना करती थी। उसने एक बार एक पडितजी से कहा कि मुझे भक्तामर सुनाभ्रो ता उस पडित ने कहा - तुमक्रो सस्कृत नही श्रानी है, क्या सुनोगी ? लेक्नि बुढ़िया के श्राग्रह करने पर पड्ित न पाठ सुनाता प्रारम्भ क्या । एक श्लोक भक्तामर का बोल कर बुढ़िया की परीक्षा करने के लिये उन्होने बीच मे बयभूस्तोत्र बोलना चालू कर दिया तो बुढ़िया मा बाली कि आपने भक्तामर का पाठ बोलत-२ यह दूसरा स्वयशू स्तोत्र ले लिया। यह सुन कर पडितजी श्राश्चर्य करत लगे झौर बूढी मा से पूछा कि श्राप तो सस्क्ृत नहीं जानती हो फिर ग्रापको कया मालूम है कि कौन सा स्तोत्र है। बुढ़िया नें कहा रोज मैं ध्यान से स्तोत्र सुनती हू इस लिये मेरी घारणा बंठी हुई है। इसी प्रकार जिनका सस्कृत नहीं भी झाती हो उन्हें भी रोज सुनने से कई स्तोत्र कठ पाठ हो जाते है। श्री शान्तिकुमारजी गगवाल, जो यह सग्रहीत स्तोत्र ग्रथ के प्रकाशन का कार्य कर रहे हैं, उनका यह सकलप निविध्न रूप से पूर्ण हो ऐसा मेरा आशीर्वाद है। उनका यह अहोभाग्य है । हर कोई इस प्रकार का कार्य नहीं कर सकता है ।




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