स्वभावोक्ति | Sawbhawokti

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Sawbhawokti by डॉ. मथुरेशनन्दन कुलश्रेष्ठ - Dr. Mathurashanandan Kulashretha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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^. है विन्तु यहाँ भी प्रपनी पूर्वे-स्थापनाझा का निर्देश करने वे साथ-साथ लेखक ने पश्चिमी वादों मे से कुछ वी स्वमभावोवित वी दृष्टि से उपयोगिता-अनुपयोगिता वा विचार क्या है । स्वभावोक्ति वा इतने विस्तार से एक अलग ग्रथ के रुप म इससे पूर्व बाई विवेचन नही हुआ । डॉ० वुलश्रेप्ठ इस दिश्वा म इसस पूर्व ही राजस्थान- विश्वविद्यालय स मेरे निर्देशन म 'वाज्य में स्वामाविकता' विपय पर शाधवार्य करने पी-एच० डी० वी उपाधि प्राप्त वर छुते हैं। उनके दोनो ग्रथों से काज्य- शास्त्रीय क्षेत्र म विचार की नयी दिधाएँ खुलती है। मतभेद वी गुजाइश स्देव झौर सब कही होती है । श्राइचयय नहीं कि विद्वानों वो इन ग्रथों वी स्थापनाझो में भी इसके लिए भ्ववाद्य मिले, परन्तु मुझे विश्वारा है कि डॉ० बुलश्रेप्ठ वो मोलिक्ता तथा उनके विवेबसह श्रम वा भी स्वीकार विया जायगा धौर उनके इस प्रयत्न का उचित सम्मान हौगा 1 पूना विश्वविद्यालय, पूना-७ -- डॉ० प्रानन्द प्रशाश दीक्षित २२-३-७३ प्रीफेसर तथा भ्रध्यक्ष, हिन्दी-विभाग




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