उपन्यास और लोक जीवन | Upanyaas Aur Lokjiivan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
209
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)एक
ভিত এজ?
यह दावा करना गलत हीमा कि प्रस्तुत निबंध कला और जीषम
के पारस्परिक सम्बंधों के समूचे व्यापक क्षेत्र पर प्रकाश डालता है । नही,
यह इससे अधिक सी मित्र लक्ष्य को लेकर चलत! है : अंग्रजी उपन्यास कला
की वर्तेमान स्थिति की जांच करना। बिचारों के उस संकट को समभतने
का प्रयत्य करना, जिसने उस नींद को ही नज्ञ कर दिया है जिस पर कि
एक समय उपन्यास হললী हढ़ता से स्थादवित था; और उसके भविष्य पर
एफ ट्ठि दालन ।
ग्रहां गह बता देना कदाचित उपयुक्त होगा कि में उपन्यास कला के
भविष्य में विश्वास करता हूं, हालांकि इसका बंतेमान बहुत ही अस्थिर
प्रतीत होता है। यह हमारी सम्यता की महान लोक कला है, हमारे
पूबजों के महाकाव्य और शांशों दा जेस्ट* की उत्तराधिकारिशी |
है, और यह बराबर जीवित रहेगी। लेकिन जीवन का अर्थ है परिवर्तन; *
सम्भव है कि ये परिवर्तन, कम-सेन्कमा कला के क्षेत्र में, सदा उन्नत्ति की
दिशा में न हों, किन्तु परिवर्तन तो वे हैं ही। ये परिवततन ही, जिनके
बिना उपस्यास अपनी जीवस्त शक्ति को कायम नहीं रख सकते, प्रस्तुत
पुस्तक का विषय हैं |
मानव इतिहास में अमेकानेक मेथी कलाओं ने जन्म लिया है,
उदाहरण के लिए जैसे सिनेमा । किन्तु अव तक कोई भी कला पूर्णातया
मरी नहीं । मानव अपनी चेतना के हर विस्तार से, हर उस वस्तु से जो
स १
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