श्रीसनातन धर्मलोक [भाग १] [चतुर्थ पुष्प] | Shri Sanatan Dharmaloka [Bhag 1] [Chaturtha Pushp]
श्रेणी : हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
521
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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« (२) श्वीरारदापीटाधीश्वर अने श्रीकरपाश्नीजी, महाराज थ्रादि
आधार्यों भरने मदात्माओं द्वारा मुक्तकंडथी प्रशंसित थ्रा एकल पन्थना
अवल्लोकनथी धर्म-बाबतमी समस्त शंकाश्रोनु समाधान यह जगे।
एना-कर्ता हुप्रत्तिद्ध विद्वान् पं० दीनानाय शास्त्री सारखत छे। वेश-*
विभाजनथ्या ते थो मुलतान बादवा समातम-घ्म संस्कृत-कालेजना
अ्रध्यक्ष दृता। विभाजनथ्या बाद देहलीना हिन्दी संस्छृत-कालेसना
अध्यक्ष यया थे। ते और श्रीदयानन्दजी मत-खए्डन करवागां घणात्त
-होग्रियार विद्वान छे |
तेश्रोषए महान् अन्यद) ग्न्यमालां रूपमां श्रा महाग्रन्थ-प्रकाश
-शरू यदे गया चे । श्रा पृ्तके धुन उपादेय ह्ये कायी। दरः
व्यि तथा पुत्तकालयो, शिवालयों माटे संगा ठे । |
--श्रीमह्ाबलभद्ट वैदान्तशिरीमणि, सम्पादक “नवमारती!
(जरतो) राजकोट । सौरा) (६।९।९४) ।
4
(३) परम पुज्यपाद, मारतकी महान् विभूति श्री प° दीनानाधजी
शास्त्री सनातनधर्मी जगतके माने हुए अद्भुत रत्न देँ। “मैं निःसंकोच
कह सकता हैँ कि--यह ३० करोड़ हिन्दुओं पर भ्गवानकी असीम
कृपा है कि जो झाप-जैसा श्रमूलपूर्व, महान् धुरन्धर-विद्वान् प्राप्त हुआ
है। ''थापके खोजपूर, शास्त्रीय लेखोंको पाकर नास्तिकोंकी बोलती,
बन्द हो जाती है, भऔौर काशी तकके बड़े-बड़े विद्वान् तक आपकी
प्रशंसा करते नहीं अ्रघाते नौर श्रापकी धाक माने हैं ।**'हमारी प्रत्येक
सनातनपर्मामात्रसे प्रार्थना है कि वह शास्त्रीजी महाराजके ঘন্থাজী
आप्य ही पू रीर तन, मन, धने सहायता कर महान् परय
भागी वने।
५ * “भक्त रामशरणदास, पिलखुश्ा, ७-६-१३
मै
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