सूरदास और उनका भ्रमरगीत | Soordas Aur Unka Bhramargeet
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
346
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)= ॐ 3
जीवन-परिचय ओर श्रसरगीत-मूटयांकन
जोवन-मौकी
हिन्दी साहित्य के स्वर्णो-्युय मक्तिकाल के बवियों के व्यक्तिगत जीवन के
(विषय मे_ प्रामाशिक एवं तिश्चित रूप से कुछ कहना बड़ा कटिन है। इस कॉल के
क्वि, ववि होने से पूर्दे अपने भ्राराध्यदेव के महाद् प्रेमी भक्त थे। उनका व्यवितत्व
খুব কষা अपने प्रिय द्वारा निभित सृष्टि के कराकर में व्याप्त हो परष्या घा। वे
अपने प्रिय के प्रेम में इतने तन््मय हो गये थे कि भपने विपय में वे न तो कुछ कहता
हो चाहते थे ह्ौर न उनके पास इसके लिए कोई प्रदकाज्ञ ही था। उनके संसर्ग भे
मानि दति व्यतितयों ने भी उनके जीवत के विषय में बहुत कम लिखा है। 'भूरमागर' के
रखियता महात्मा सूरदास के जीवन के विषय में भी यह कथन बावन तोले पाद रत्ती
सद्दी ही उतरता है। उनके जीवन का प्रामाणिक एव मतभेदों से मुत्रत बृत्त भप्राप्य है।
डिन््तु तो भी बिभिस्त विद्वानों ने इस विपय में भव तक धनेकों खोज की हैं
और झन््तःसादय शव वाह्मसाध्ष्य के भ्राधार पर भपने-भपने मतों की पुष्टि करने का
अयाम किया है। यहाँ हम उन सब विवादग्रस्त मतो के चक्कर में न पहुकर सर्वाधिक
उपयुक्त, प्रामाणिक एवं त्तकंसग्रठ भतों के भाधार पर ही उनके जीवन की ऋरकी
प्रस्तुत करते का प्रयत्व करेंगे। सारल्य की दृष्टि से यदि हम भपने चरितनायक के
जीवन-क्प को विभिन्न शीर्पकों मे विभवत कर ले, तो उचित ही रहेगा ।
ऊम्म-स्थाव तथा जन्मतिथि
चह कौनसा प्रावत स्थान था जिस पर भवतराज सूरदात्त ते जन्म लिया था ?
इस विधय में गोपाचल, रुतेदुता, गऊघाट तथा सीढ़ी भादि स्थानों का भनुमात लगाया
जाता है । डॉल पीताम्वरदत बडस््वाल गोपाचल कौ भुर की कममूभि भोनते ह
आाच्ं एुक्ल तया डो० दमामसुन्दर दास নি অবলা জন रुनबुता के पक्ष में श्रगट
किया है। गऊघाट् वाली बात तो लगभग सभी प्रमुख विद्वान नहीं मानते ! पहाँ तो
सूरदासजी बाद में राये थे ) सर्वाधिक प्रामाणिक, उपयुक्त एवं तकृठगत मतं हे
चार्ता-साहित्व से ही उपलब्ध द्वोता है। इसके झमुसार दिल्ली से चार कौस दूर
सीढ़ी सापक ग्राम ही सूर की जन््मभूमि है। इस मत की पुष्टि के प्रमाण सर्वाधिव
युक्तकष्रत प्रतोत ছীনি ই) “ঘীতেতী বভ্যাবেন ফী লানী' ঈ মাবসঙ্গাহা मे श्री हरिरायर्ज
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