अंगविज्जा | Angvijja
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm, ज्योतिष / Astrology
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
32 MB
कुल पष्ठ :
486
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)॥ जयन्तु वोतरागाः ॥
प्रस्तावना
१ अप्रंगविज्ञापदणणयग्रन्थकी हस्तलिखित प्रतियाँ
प्रस्तुत अंगविज्जापश्ण्णयं ग्रंथके संशोधनके लिये निम्नोछिखित प्राचीन सात हस्तलिखित श्रतियोंका
सान्त उपयोग किया गया है, जिनका परिचय यहाँ पर कराया जाता है।
१ हँ० प्रति--यद्द प्रति बड़ौदा-श्री आत्मारामजी जेन ज्ञानय॑दिरमे रखे इए, पूज्यपाद जैनाचार्य
श्री १००८ विजयानन्द सूरीश्वरजी महराजके प्रक्षिष्य श्री १००८ श्री हसविजयजी महरयाजके पुस्तक-संग्रहकी है |
भडार प्रतिका क्रमांक १४०१।२ है और इसकी पत्रसंख्या १३८ है । पत्रे प्रति प्रृष्ठमें १७ पंक्तियाँ और
'इरण्क पंक्तिमें ६५८ से ६९ भषक्षर छिखे गये हैं। प्रतिकी लंबाई-चौड़ाई १३।१८५॥ इश्च हैं । लिपि सुंदर है
और प्रतिकी स्थिति अच्छी है ।. प्रतिके अंतके तीन-चार पत्र नष्ट हो जानेक्रे कारण इसकी पृष्पिका प्राप्य
नहीं हैं, फिर भी प्रतिके रंग-दंगको देखते इए यह प्रति अनुमानतः सोरहवीं शतान्दीके उत्तरार्धे या सत्री
सदीके प्रारम्भने लिखित प्रतीत होती है । प्रति छुद्धिकी दृष्टिसे बहुत ही अशझुद्ध हैं और जगह-जगद्द पर
पाठ और संदर्भ भी गंछित हैं। प्रति हंतविजयजी महाराजके संग्रहकी होने इसका संकेत मैंने हँ ० रखा है ।
यद भ्रति पन्न्यास सुनिवर् श्री रमणी कविजयजी द्वारा प्राप्त इई है ।
निव
२ त० प्रति-यह प्रति पाटण ( उत्तर शूजरात ) के श्री हेमचन्द्राचार्य-जैन-ज्ञानमंदिरमें, वहाँके
तपागच्छीय श्रीसंघकी . सम्मतिसे रखे हए तपागच्छ ज्ञानमेडारकी है। मंडारमें प्रतिका क्रमांक १४८६५ है
और इसकी पत्रसंस्या १३३ है। पत्रके प्रतिपृष्ठे १५ पंक्तियाँ और प्रतिपैक्ति ६३' से ६९ थक्षर लिखे
गये हैं । प्रतिकी लंबाई-चौड़ाई १३१८४॥। इश्बकी हैं | लिपि भव्य है। अतिके अंत निम्नोद्ध्ृत पुष्पिका है-~
“णमतो भगवईए छुयदेवयार् ॥ छ ॥ म्रंधाम्रे०ण ८८०० ॥ संवत् १९०९ वधै श्रावण वदि ८ भीमे ॥
अंगवियापुस्तकं समाप्तम् ॥ छ ॥ दम भवतु ॥ श्रीश्रमणसंघस्य कस्थाणमस्तु ॥ ले० देवदत्तलिखितम् ।
श्री वीरदेवमतसुप्रभावको वीरदेवसाधुव्रः |
उकेश कुखाकार्प्रकाशने सोमसंकारः ॥ १ ॥
ताया निर्माया विच्हणदेन्यत्न धर्मकर्मरता ।
समजनि कलाघरोज्ज्वल्शील्गुणारढंकृता सततम् ॥ २ |
ब्िजपालदेव आसौदनयोस्तनयों विराजितनयश्री: |...
तज्जाया ब्रजाईनाम्नी अ्रुतमक्तियुक्तमना: ॥ ३ ॥
स्वजनकगूर्जर-जननी पूरां-वरबंधुपूनपाल्युता: ।
श्रीजेनशासननभ: ग्रमभासने तरुणतरणीनाम्॥ ४ ॥
बाणखबाणघरामितवर्षे १५०५ श्रुत्वोपदेशवाचमिमाम् ।
श्रो जयचंद्रयुरूणां समलीटिखदंगवियां ताम् ॥ ५ ॥
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