प्रार्थना - प्रवचन खंड - २ | Prarthana - Pravachan Khand - 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रार्थना-प्रवचन ११ हमारा काम है । वह हम करे। तो इत १५०० आदमियोने प्रुषार्थ किया । लेकिन कब, जब वे श्रीनगरके बचानेमे सारे-के-सारे कट जाते है । पीछे श्रीनगरके साथ काइमीर भी बच जायगा। इसके बाद क्या होगा ? यही होगा न, कि काश्मीर काश्मीरियोका होगा। शेख अब्दुल्ला जो कहते हे वह तो में सपृर्णतया मानता हू कि काइमीर काइ्मीरियोका हु, महाराजाका नही । लेकिन महाराजाने इतना तो कर लिया है कि उन्होने शेख अब्दुल्लाको सब कुछ दे दिया और कह दिया है कि तुमको जो कुछ करना है सो करो। काश्मीरको बचाना है तो बचाओ। ग्राखिर महाराजा तो कादमीरको बचा नही सकते! श्रगर काइ्मीरको कोई बचा सकता है तो वहा जो मृसलमान ह, कादमीरी पडत है, राजपूत हे और सिख हे, वे ही बचा सकते हे। उत सबके साथ शेख अ्रब्दुल्लाकी मोहब्बत है, दोस्ती है। हो सकता है कि शेख अब्दुल्ला कादमीरका बचाव करते-करते मर जाते हे, उनकी जो बेगम है वह मर जाती है, उनकी लडकी भी मर जाती हे और आखिरमे काश्मीरमे जितनी औरते पडी हे वे सब मर जाती है, तो एक भी बूद पानी मेरी आखोमेसे आने वाला नही है । अगर लडाई होना ही हमारे नसीबमे हैं तो लडाई होगी । दोनोको ही लडना हं या किस-किसके बीच होगी, यह तो भगवान ही जानता हं, हमलावरोकी पीठपर अगर पाकिस्तानका बल नही हं या पाकिस्तानका उसमे कोई उत्तेजन नही है, तो वे वहा कैसे टिक सकते हे, यह मे नही ज्ञानता। लेकिन माता कि पाकिस्तानकी उत्तेजना नही है, तो नहीं होगी। जब काइ्मीरके लोग लडते-लडते सब मर जायगे तो काश्मीरमे कौन रहं जायगा ? शेख अब्दुल्ला भी चले गए, क्योकि उनका सिंहपन, बाघपन तो इसीमे हं कि वे लडते-लङते मर जाते हे और “मरते दमतक उन्होने काश्मीरको बचाया वहाके मृसल- मानोको तो बचाया ही, उसके साथ वहाके सिख और हिंदुश्नोको भी । वे ठेठ मूसलमान ह । उनकी बीबी भी नमाज पढती हं । उन्होंने मधुर कठसे मृझभे ओज अबिल्ला' सुनाया था। में तो उनके घरपर भी गया हु । वें मानते है कि जो हिंदु और सिख यहा हे वे पहले मरे और मुसल- मान पीछे, यह हो नही सकता। वहा हिंदू और सिखकी तादाद कम हैं,




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