महामात्य माधव | Mahatmay Madhav

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गुणवंत राय - Gunvant Ray

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परदेशी - Pardeshi

परदेशी (26 जुलाई 1923 -- 20 अप्रैल, 1977) भारत के हिन्दी लेखक तथा साहित्यकार थे। उनका वास्तविक नाम मन्नालाल शर्मा था।

प्रेमचंद और यशपाल के बाद परदेशी ही ऐसे लेखक थे जिनकी रचनाओं का सर्वाधिक भाषाओं में अनुवाद हुआ है। प्रेमचंद के बाद उपन्यासकारों में परदेशी का विशिष्ट स्थान है। उनकी स्मृति में राजस्थान की प्रतापगढ़ की नगरपालिका ने एक छोटा सा सार्वजनिक पार्क भी निर्मित किया है।


जीवन परिचय

परदेशी का जन्म सन १९२३ में राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले के पानमोड़ी ग्राम में हुआ था।

नौ वर्ष की उम्र में परदेशी उपनाम रखकर काव्य लेखन आरंभ किया। चौदह वर्ष की उम्र में परदेशी का लिखा ‘चितौड़’ खंड काव्य प्रकाशित

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नगर नायक २९ फिर कुछ देर प रह कर ओर दू्षरों को सन्तोष दिलाने के स्वर में जैसे अपने ही मन को परितुष्ट करने का प्रयत्न कर रहा हो, उस भाँति मलिक बोला--“यही रास्ता सलामत है| हमें यह खयाल न था कि मंजिल इतनी लम्बी होगी और इकबाल शाह के जंगलों में रात का अंधियाया धिर आयेगा । मगर अब तो....।” उमर कोतवाल की सूचना के अनुसार उनके साथ के दो साधारण सवार अपने घोड़ों से नीचे उतर गये और छहों घोड़ों की रास थाम कर खड़े हो. गये । उन्होंने उन्हें नदी में जल पिलाया । खुद भी पिया। पानी की मशक भर ली और तैयार होने लगे, तभी कई काली आकतियों ने उन्हें घेर लिया--खबरदार !” काली आऊक्ृंतियों में से एक बुलन्द आवाज़ उढी । अचानक चाबुक की आवाज़ें आईं। उनके घोड़ों पर चाबुकों की मार पड़ने लगी । भय और. विस्मय की दशा में घोड़े अपना साज-सामान फेंक- कर तितर-बितर हो गये। भगोड़े घोड़ों में से एक के पैरों की ठोकर से उमर कोतवाल गिर पड़ा । वह मुबारक पर गिरा था इसलिये मुबारक भी चिल्लाया । तभी एक जोर का चाबुक गजा भौर मिक फिरोज की चीख हुवा में उठकर सो गई । क्या हुआ, कैसे हुआ, भ्यो हुआ, इस रहस्य को समभने-बूकने का कोई प्रथत्न करे, तब तक तो छहों आदमी बंरी बना लिये गये । और उनके हाथों में और बदन पर रस्सियाँ बाँधकर, काले आकार उन्हें उस गहन अंध- कार में खींचकर ले जाने लगे । ये काले काले आकार, सभी चुड़सवार थे। उनके घोड़े रास्ता काटने लगे। ऐसा प्रतीत होता था, ये घड़े इस अँघेरी रात से भली भाँति परिचित हैं और कंकर-पत्थरों में चलने के अभ्यस्त हैं। . मलिक फिरोज, मूब्रारक, उमर कोतवाल, नागर नायक और उनके दोनों सवार पैदल चल रहे थे। पंथ भपरिचित था भौर अंधकार सघन था ॥ उनके दोनों हाथ पीठ पर बंधे थे और मज़बूत रस्से एक एक घुड़सवार ने सावधानीपूवंक थाम लिये थे ।




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