चित्र मीमांसा के सन्दर्भ में अप्पयदीक्षित एवं पण्डितराज जगन्नाथ के विचारों का समीक्षात्मक अध्ययन | Chitr Mimansa Ke Sandarbh Mein Appydikshit Avam Panditraj Jagnnath Ke Vicharo Ka Samikshatmak Adhyyan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
260
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about नागेन्द्र नारायण मिश्र -Nagendra Narayan Mishra
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कुवलयानन्द पर लिखित 'रसिकरञजनी' नाम की टीका से टीकाकार गदाधर
बाजपेयी द्वारा अप्पय को अपने पितामह के श्राताका गुरू बतलाया' जाना भी अप्पय को
ईसा की सोलहवीं शती के अन्तिम चरण से लेकर ईसा की सत्रहवीं शती के प्रथम
चरण तक के काल को ही प्रमाणित करता है ।'
अप्पय दीक्षित, भट््टोजिदीक्षित और पण्डितराजजगन्नाथ ये तीनो सम सामयिक
थे। ऐसा काणे ने इस प्रकार सिद्ध किया है - «४५ ०1 ४6 चित मीमासा 15 1810
9711041 1709 ( (~ 1652 - 53 ^ 7 ) 1॥1श४०0०६७, ०0०1 116 रसगड् गाधर 8710 {€
चित्र मीमासा खण्डन ৮৮৪৪ ০01099৪৫ 96016 1650 800 ৪06 164] 4১1) 870 0169
৪76 006 0109009006৪ 11800161010 00651650016 006 11651819 8001৬10 0 1231718
1195 95627. 1620 80 1660 413
অন্ন दीक्षित द्रविण, भट्टोजिदीक्षित महाराष्ट्री ओर पण्डितराज जगन्नाथ
तैलड्ग ब्राहइमण थे। तत्कालीन सामाजिक कट्टरता और रूढिवादिता के रहते इन
तीनो मे विरोध होना स्वाभाविक था। इतना सब कुछ होते हुये भी पण्डितराज ने
अप्पय दीक्षित का उन्मुक्त हृदय से स्वागत किया है - द्रविण शिरोमणिगि, द्रविण -
पुगवै इत्यादि |
चित्रमीमासाखण्डनधिक्कार की रचना करके चित्र मीमासा खण्डन का उत्तर देने
वाले अप्पय दीक्षित के भातृपौत्र नीलकण्ठ दीक्षित के 'शिवलीलार्णव” से यह पता
चलता है कि इन्होने सौ ग्रन्थो की रचना की। दुर्माग्यवश अप्पयदीक्षित की बहुत कम
পা কারা পার ও উর কা ইউ এ অনি: রঃ কা পা উপ ও लेकर সা এপ 3 এ রা পা পা গা চারি সর পপ, রা জিও এ भण, क গা জাল
৭- अस्मत्पितामहसहोदरदेशिकेन्द्र - रसिकरजनी
२- काणे - सस्कृत काव्यशास्त्र का इतिहास - २४८
३- [315101% 01 9217510707050105 - 78116
४- द्वासप्रति प्राप्य समा प्रबन्धाजृछतव्यघादप्पयदीक्षितेन्द्र - शिवलीलार्णव १-६
User Reviews
No Reviews | Add Yours...