वैदिक इन्द्रोपाख्यान का उद्भव एवं विकास एक समीक्षात्मक अध्ययन | Vedik Indropakhyan Ka Udbhav Avam Vikas Ek Samikshatmak Adhyyan

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Vedik Indropakhyan Ka Udbhav Avam Vikas Ek Samikshatmak Adhyyan by इंदुप्रकाश मिश्र - Induprakash Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अथर्वविद के ঢানাগান্রলাত বল वेद का ज्ञान सर्वप्रथम महर्थि अंगिरा कौ प्राप्त हुआ था । इस तथ्य का समर्थन मनु भी करतेँ हैं - अथर्वा ङ्भ रतौ सखम्‌ । अयर्व० 10-7-20 अध्यापयामास पितुन्‌ रिषरा्निरतः कविः ।। मन्० 2-15। परन्तु यह ক विचित्र ˆवदतौ व्याघात प्रदीत होता है कि अहिंसा रवं अकुटिलता ते मन्ाशान्ति पाने वाला ग्रषि रेसे किसी वेद का प्रवचन करे जो ভিলা एवं कुटिलता ते व्याप्त हो | वाग्रुपुरराण 65-27 , ब्रदमाण्डपुराण 2-1-56 बहा गरदीयपुराण 5-7 मेँ त्पष्टत: कहा गया है 7क अथर्ववेद घौर कृत्याविधि तथा आभिवारिक मंत्रोँ वाला ग्रंथ है । भङ्गि रसकल्प मँ इमे मारणादि षद्‌ कर्मी का विधान्प्रंय बताया ग्या हे | अवेस्ता का अग्रव अथर्वन्‌ का ही प्रतिल्प ই | आचार्य भरत के नाट्यशात्त्र में नादयोत्पत्ति के प्रसंग में चारों ही वेदोँ का समन्वित उल्लेब हुआ है - जग़राह पा द्यम्ग्वेदात्‌ सामभ्यो गी तिमेव च । यजुर्वेदादभिनयान्‌ रतानाथर्वगादपि || नाटय स्वयँ अथर्विद , चारों वेदोँ को शक ही साथ स्मरण करता ই | वेदों की ईपवरयिता के सन्दर्भ में कहा गया है - यस्माहचो अपालकझ्लब यजुर्यस्मादपाकघन्‌ । सामानि यस्य लोगान्यथर्वाक्लिरतो मुखश ।। अथर्व0 10-7-20 { अथर्वविद के ही एक अन्य मंत्र में उत्ते भिष्ग्वेद” के रूप में , त्रयी के साथ उल्लिखित किया गया है - चः सामानि भेघजा यजूँषि [अर्व० ।-6- 1५]




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