वैदिक इन्द्रोपाख्यान का उद्भव एवं विकास एक समीक्षात्मक अध्ययन | Vedik Indropakhyan Ka Udbhav Avam Vikas Ek Samikshatmak Adhyyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
45 MB
कुल पष्ठ :
363
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अथर्वविद के ঢানাগান্রলাত বল वेद का ज्ञान सर्वप्रथम महर्थि अंगिरा कौ
प्राप्त हुआ था । इस तथ्य का समर्थन मनु भी करतेँ हैं -
अथर्वा ङ्भ रतौ सखम् । अयर्व० 10-7-20
अध्यापयामास पितुन् रिषरा्निरतः कविः ।। मन्० 2-15।
परन्तु यह ক विचित्र ˆवदतौ व्याघात प्रदीत होता है कि अहिंसा रवं
अकुटिलता ते मन्ाशान्ति पाने वाला ग्रषि रेसे किसी वेद का प्रवचन करे जो ভিলা एवं
कुटिलता ते व्याप्त हो |
वाग्रुपुरराण 65-27 , ब्रदमाण्डपुराण 2-1-56 बहा गरदीयपुराण 5-7 मेँ
त्पष्टत: कहा गया है 7क अथर्ववेद घौर कृत्याविधि तथा आभिवारिक मंत्रोँ वाला
ग्रंथ है ।
भङ्गि रसकल्प मँ इमे मारणादि षद् कर्मी का विधान्प्रंय बताया ग्या हे |
अवेस्ता का अग्रव अथर्वन् का ही प्रतिल्प ই |
आचार्य भरत के नाट्यशात्त्र में नादयोत्पत्ति के प्रसंग में चारों ही वेदोँ का
समन्वित उल्लेब हुआ है -
जग़राह पा द्यम्ग्वेदात् सामभ्यो गी तिमेव च ।
यजुर्वेदादभिनयान् रतानाथर्वगादपि || नाटय
स्वयँ अथर्विद , चारों वेदोँ को शक ही साथ स्मरण करता ই | वेदों की
ईपवरयिता के सन्दर्भ में कहा गया है -
यस्माहचो अपालकझ्लब यजुर्यस्मादपाकघन् ।
सामानि यस्य लोगान्यथर्वाक्लिरतो मुखश ।।
अथर्व0 10-7-20 {
अथर्वविद के ही एक अन्य मंत्र में उत्ते भिष्ग्वेद” के रूप में , त्रयी के साथ
उल्लिखित किया गया है -
चः सामानि भेघजा यजूँषि [अर्व० ।-6- 1५]
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