मूलशंकर याज्ञिक की कृतियां का आलोचनात्मक अध्ययन | Mulshanker Yagik Ki Kriteyo Ka Alochanatamak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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10 तथा नगरों का महत्त्वपूर्ण कान प्रस्तुत किये गये है। आर्यदेश को रक्षा सुरक्षा करने वाले अनेक राणकंशों का इीतहास देने तथा उसको सामाजिक उपयोजगता का ज्ञान कराने आद के प्रसंग भर निश्वय हो न्न सदर में रापष्ट्रयता के भावों को प्रदीष्त करने को दृष्टि ते प्रस्तुत িঠ गये है। ्रह्मुराण में ब्रह्माण्ड वर्णन के प्रसग में जम्ब्ूढ्ीप का वर्षन करते हुए कहा गया है कि सागर के उत्तर दशा ढी ओर और मागर से दक्षिण पदा की ओर भारतवई की 1स्थीत है इनमें जन्म हेने वाले भारतीय &- उत्तरेण समुद्रत्य মাটন হাটা | वरै तद्भारतं नाम भारतो फ़ सन्तौतः।। । इसी प्रकार पुराणों में अनेक स्थानों पर राषष्ट्रयता के भाठ प्राप्त होते है। तेस्कृत के उपणीत्य काव्यों में भो रापष्ट्रियता का कीन मिलता ह। प्रत्येक वविकीसत एवं वविकासशोल देश में कुछ ऐसे ग्रान्थरत्न हुआ करते है जमे उतत देश को सस्कीत, सभ्यता एव धार्मिक मर्याद आद ण मलन हता है ।प्से ही गन्थ राष्ट्र के अप्ृल्य नोवन-प्नोत होते ह। इन ग्रन्थो में राष्ट्र को सातीहाँत्यक युधा के भी शनेक आलम्बन होते है। जहाँ ते स्वराष्ट्र अनुगा मो रत्तसिद्ठ साहित्यकार अपनी सवेदना के ही अनुत्तार कथावस्तु का अपहरण कर अपनी योग्दता के बलपर राष्ट्र के वीरत्र शव धरम के गौरव का विव्ञात करता है | রাজ খানও খাজা ০০ আরজ কি ০০০ জি জনে আক नक আত পপ অজ আদ जकर क क # পট নট ০ পদ অর ০০ জজ | कये) | ब्रह्मपुराण । १




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