मुक्ति यज्ञ | Mukti Yagata
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
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प्रो। सत्येंद्र - Pro. Satyednra
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रेक १1 [ दृश्य २
रास्ता
[ हीरादेवी का प्रवेश-साथ में कंचुकीराय ]
दहीरा--राजासाहब ! आपने कुछ सोचा ? चम्पतराय और
उसके लड़के का साहस बढ़ता जा रहा है, उनके दाँत
जमने लगे है। विष के दाँत जल्दी तोड़ देना ही
अच्छा है--
कंचुकी--खूब ! खूब, रानी साहिबा ! हम तो आपके इसी गुण
पर मुग्ध हैं। कया बात कही है ? विष के दाँत ! जरूर
तोड़ देने चाहिये। टुकड़े टुकड़े कर देने चहिये। इतना
हियाब ! शाहंशाह के जाति-भाई ओर सेनापति रख-
वूलहखाँ को गिरफ्तार कर लिया--कितने नासमम्क हैं !
अगर आलमगीर को ख़बर पड़ जाय तो सारा बुन्देलखंड
तबाह हो जाय । रानी साहिबा ! आप नही जानतीं |
में तो रह चुका हूँ इन लोगो के साथ। बड़े ही ग्रीब-
परवर ओर मौजवाले--ओऔर इकवाल कितना बुलंद है--
एक ओर से दूसरे छोर तक इनका दबदबा है-मुसल-
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