मुक्ति यज्ञ | Mukti Yagata

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Mukti Yagata by प्रो। सत्येंद्र - Pro. Satyednraश्री गुलाबराय - Shree Gulabray

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प्रो। सत्येंद्र - Pro. Satyednra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रेक १1 [ दृश्य २ रास्ता [ हीरादेवी का प्रवेश-साथ में कंचुकीराय ] दहीरा--राजासाहब ! आपने कुछ सोचा ? चम्पतराय और उसके लड़के का साहस बढ़ता जा रहा है, उनके दाँत जमने लगे है। विष के दाँत जल्दी तोड़ देना ही अच्छा है-- कंचुकी--खूब ! खूब, रानी साहिबा ! हम तो आपके इसी गुण पर मुग्ध हैं। कया बात कही है ? विष के दाँत ! जरूर तोड़ देने चाहिये। टुकड़े टुकड़े कर देने चहिये। इतना हियाब ! शाहंशाह के जाति-भाई ओर सेनापति रख- वूलहखाँ को गिरफ्तार कर लिया--कितने नासमम्क हैं ! अगर आलमगीर को ख़बर पड़ जाय तो सारा बुन्देलखंड तबाह हो जाय । रानी साहिबा ! आप नही जानतीं | में तो रह चुका हूँ इन लोगो के साथ। बड़े ही ग्रीब- परवर ओर मौजवाले--ओऔर इकवाल कितना बुलंद है-- एक ओर से दूसरे छोर तक इनका दबदबा है-मुसल-




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