जीव विज्ञानं की प्रारंभिक पुस्तक | Javi Vigyan Ki Praarambhik Puustak

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : जीव विज्ञानं की प्रारंभिक पुस्तक  - Javi Vigyan Ki Praarambhik Puustak

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about बाँके बिहारी श्रीवास्तव - Baunke Bihari Shreevastav

Add Infomation AboutBaunke Bihari Shreevastav

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
प्रस्तावना 11{70पप्लाका. इस संसार में जितनी चीजें हम देखते हें वे दो भागों में बॉटी जा सकती दै--(1) जीवधारौ ( [1५11 ०289115015 ) और (2) निर्जीव ( 01114111 {11115 )। साधारणतया सब रोग इन दोनों में भेद माल्म कर सकते हैं यद्यपि यह बताना कठिन दे कि जीवन क्या है अथवा जीवधारियों की उत्पत्ति कैसे हुईं। यदि विचार किया जाय तो इन दोनों में निम्नलिखित वैज्ञा नक भेद हें । जीवयारी ओर निर्जीव (रण्ड गाते रिएा-1का४३)-- (१)जौवधारी चलते-फिरते रहते द, तथ। उन्मे गति होती है जो उनकी इच्छा के अनुसार होती है, लेकिन निर्जीव स्थिर रहते हैं । कुछ ऐसी निर्जीव वस्तु हैं, जैसे इजिन, मोटरहार, हवाई जहाज इत्यादि जिनमें गति तो द्वोती है, परन्तु यद्‌ उनङी इच्छ पर निभर नदीं रहती ओर इनमे जो शक्ति (161) कोयटे या पेदरक्के द्वारा उत्पन्न की जाती है उसे वै स्वयं पूरी नहीं कर सकते । (२) जीषधारी भोजन करते हैं और बढ़ते रहते हें, पर यह बात নিসা, में नहीं पाई जाती । परन्तु कुछ निर्जोव ऐसे जैसे रवा ( 0৮512] ) आदि जिनको यदि उनके संपृक्त घोल ( ১০19 05৫ 50111101 ) में रख दिया जाय तो वे बढ़ जाते हैं । केवल मेद यद्द हैं कि रवै का बढ़ना ऊपर के जोड़ से द्वोता हे, परन्तु जीवधारी का बढ़ना अन्दर से बाहर की ओर होता हे । (३) जीवधघारी सदा साँस छेते रहते हैं अर्थात्‌ ऑक्सौजन (0১556) উন ই জীহ कारबन डाई-ऑक्साइड ( (27001 ৫1-0201৫9 ) छोशते है । इसके बिना कोई जीवधारी जीवित दी नहीं रह सकता । निर्जोव में यद्द बात नहीं पाई जाती ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now