प्रवचनसार प्रवचन अष्टम भाग 8 | Pravachan Saar Pravachan Bhag 8
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
256
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गाथा*(७२: यू | । । ও.
' आधारपर वहःऐसा+हड़ संकल्प बना कर काम:करने लगेः किःजवःपर प्रदार्थोः
से. मेरा कुछ वस्ता नहीःहै तो मै किसी मीःपर पदाः क्यो. (पने उपयोगः
में लू*:? ेसा बह असहयोग :;करदे, पर पदार्थो क्राः अ्रसहयोगः करदे, ;किंसीः
“ संहज दर्शनकेः प्रयोजनके ` लिए; अथवा. सत्य? मैं क्या: हूँ,: यथार्थ কী ভা রং
: इसके अअ्नुभवकेंः लिए सत्याग्रहः-कर दे .तोःजिसको अभी: आत्मानुभूतिः
: ` नही हुई हैःपेसे+पुरुषकोःःभी इसी .पद्धतिकरे.ः- हाराः आंत्मनुभवकरीः वेति.
- मिल सक्रतीःहै अर्थात् श्रात्मानुवः होःसकता है |
श्रात्मानुभवसे दही सत्य प्रकाज्ञ--भया;भ्रत्मानुभव ` होनेपर “ही इस. जीवक
का पूरा नेत्र खुलता है-कि-इसःजगतभेः मेरे कोः करे योग्यः; काम क्या?
मुझे:क्या करना: चाहिए क्या“ मेरा. सन्मां है -? उसे यह् ~ स्पघ्र हो जाता
है.। . संसारमें सव/चीजें सुलभ- हैं ॥ धन.मिले; “कंचन मिले, अतिष्ठा. मिले, सब्र;
कुछ ज़ीवको- साधन मिले-पर-एक-आत्मानुभव प्राये:विता-यह जीव भिखारी
'. हीबना रहा १ जेसे-भिखारी:लोग:घनिकोंसे कुछ,प्रानेकी इच्छा: रखते: हैं तो
वे,भिखारी कहलाते .रहैः;दसी-प्रकार जो जीव किसी :भीः वाद्य - पदार्थसेभ्रपने
` . हितक्रोःश्रपनेःतरक्कीकः प्रासाः रखताःदैः तोऽवह प्राणी -किसी भिखारीसे
` कमनी है फक; इतना रहेगाः-किःये ` भिखारी.:तरेतनःपदाथसि }दी- माला
करते ह किन्त ये मोही भिखारी चेतनः: म्ौरःश्रचेतन सभी पदार्थो से हितकी
- उन्नतिकी आशा-लगाये हुए.भीख माँगते हैं... . ९०३ 5৮ বা
सिथ्याहृष्टिका श्रविवेक--भेया,; एक कहावत: हैः जिसकी ,अल्तिम;:पंक्ति: है;
कमी गिन न जातिकुजौतिः।; मतलवः यहः हैक यह मोही: प्राणी इतना
. , भिखारी है. कि. यह् न.तेतनेः गिनताः न. प्रचेतनः; जेसेः कि क्रामी पुरुषःन्र जात्ति
. ग्िनता न:कुजाति गिनता;-सव् पदार्थों से:अप्रने आनन्द्रकीःझाशा >बत्ताएहुए
` दहैःयहः! प्रहोशझात्मानुभति, जग्रवन्तःहो जिसके प्रतापसें-ग्रनन्तकरालसे /लगे. हुए
' 'सारे:सुंकटःटल सकते हु ! वह सतुसंग-जयवंत होग्रोःजिसमे रहकर आत्मानुभूति
. भे रेरणाः-मिलती.है ।; जिसमे स्कर सत्मागमे चलनेकृा-उत्साह्-जाराताः हैः
` वृह सत्संगःजयवंत ,हो-॥; वह देवभक्ति -जयवंत : हो, जिस; दैव भक्तिके .मार्गसे
गुजर कर-हम : ग्रात्मकल्यारकाः. ` उत्साह् -वना--सकतेः है :-्रौरःयथाराक्ति
भ्रात्मानुभूतिक्रे-मार्गमे लगःसकते-है ० आत्मानुभूति ही सर्वश्रेष्ठ. हमारे.कल्यारा
का साधन है-।:इसके अर्थ ज्ञाज्के स्वरूपका मनन करना ज्वाहिये:। -..... ~:
; श्रलिंडग्रहराकेपुर्वोक्त चार, अर्थोका संक्षेप यहां प्रकरण “चल . रहा है।कि
. आत्माअलिज्ञप्रहणःहै 1 इस”:अलिज़ग्रहणके নীল श्रथः ह ॥.इसके पवार अर्थ
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