माता-पिता खुद एक समस्या | Mata Pita Khud Ek Samasya

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Mata Pita Khud Ek Samasya by ए. एस. नील - A. S. Neelसंतोषकुमार मेहता - Santoshkumar Mehta

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ए. एस. नील - A. S. Neel

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संतोषकुमार मेहता - Santoshkumar Mehta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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১ १५ माता-पिता एद एक समस्या करनेर्म । माँ, बाप, या दोनोंका रुख बच्चेके प्रति कैसा द्ोता है, यह জানলা यहुत आवश्यक दै, इसी कारण ये वच्येके नीवनमे विशेष मदत भी रखते हैं । बच्चेमें लोगोंके प्रति अधिकार भावना जाग पती दै एक उदादरणसे यद बात स्पष्ट द्वो जायगी। मोँक्े यह डर लगता है कि बच्चा कहीं आगसे अपनेको जला न ले। यार बार जैसे ही बच्चा भागके निकट जाता है, वह चिल्ला पढ़ती दै-- उससे तुम जल जाश्ोगे।” इस रकार आगके प्रति बच्चेका रुख सीधा-सादा न रहकर पेचीदा गन जाता दे ! उसके लिए आग, आग न रहकर, आग और माँके संबन्धसे बनी हुई कोइ अन्य तथ्य यन जाती दे । बद अपने अनुभवसे तो जानता नही करि भाग जलाती है, यह तो इतना ही जानता दै कि माँ कहती दे कि লাম জাতী है? अगर छुटपनमें ही मौने बच्चेको ज़रा-सा भी जलने दिया दोता, तो बच्चा समार जान लेता और भआगके भति उसका रुख स्वयकी ओ्रोरसे रचनात्मक बन जाता । मौके कारणासते एक तो वह आंगसे डरने लगता है और दूसरे स्वाभाविक क्रियाम पाधा डालनेफे कारण पद माँ से छणा मी करने लगता है। इस ) और छुटपनमें दृस्तमैथुनकी बातके निष्क्षमें बहुत कम अतर टै यच्चा अलुभप्े नहीं जानता कि जननेन्द्रियकों छूना अनुचित दे, वद केवल इतना ही जानता दै--मों कद्दती दै कि रे दूना श्रनुचित है । अत दस्तमैथुनका मौ (ঘ101115175011015%) केसाथ बद्ना गदृरा सम्पाध द्वोता है। मो अनजानर्मे ही नहलाते घुलाते समय गच्चेमें जननेन्द्रियके प्रति श्याकपण दैदा कर देती दे। अनमाने ही पद बच्चेकों हस्तमंथुन सिला देती दे । बादर्मे जय हसी थस्तुझो लकर बढ टॉटती फटयारती दे, तो पच्चेडे बढ़ा सदमा पहुँचता दे । वह सांचता दै--मोमे ही इसे आरम्भ किया और भव यही मना वर रही है। यद्द विचार बचेक॑ चेतन-मनर्मे अवश्य नहीं होता किन्तु अचेतन-मनर्भ पद हसझा अनुभव कर लेता है। भ्रोंफे लिए यद् सम्भव है दि बद या चिछो इस प्रद्ार बड़ा करे कि उसमें यौनके श्रति अस्वाभायिऊ घारणाएँ न हों । पन्यियों (०४००६ उलगर्ने) न पैदा हो जायें, उसमें ग्ययेका मानसिद दद्व न पैदा हो जाय। डिन्‍्तु यद तमी सम्भव दै जय मो स्वय अपनी लैंगिक प्रथियोसते मुक हो जाय। लास म्प्र




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