जैन-संस्कृति का राजमार्ग | Jain Sanskarti Ka Rajmarg

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Book Image : जैन-संस्कृति का राजमार्ग  - Jain Sanskarti Ka Rajmarg

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शातिवद मेहता - Shativad Mehta

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श्री गणेशलाल जी - Sri Ganeshlal Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जैन-सस्कृति फ विशालता १४ गतियो पर श्रधिकार नटी है, वह्‌ ग्रपने जीवन म क्षुद्र ही बना रह जाता है। आज मनुष्या की अधिकतर यह प्रद्धत्ति देखी जाती है कि व अपनी ओर लक्ष्य म देकर दूसरा को नियत्रित करन का ज्यादा ख्यात करते है और इसी से पतन हो रहा है । अगर अपन झाप पर नियत्रण रखन की पहले काक्षिश की जाय ता स्वय उसको प्रद्तत्तियाँ जब सन्तुलित हा जाएगी ता सारे समाज में ही स्वयचालित नियत्रण व संतुलन हाने लगेगा और वह कप्ठप्रद नही रहेगा | जिसने अपने जीवन पर अधिकार कर लिया, भावनाकौ द्धि भे उसका जमन परे श्रधिकार हा जाता है । तो जैन सस्क्रति तीन प्रमुख बिन्दुओ पर ग्राधारित है भौर वे तीन विदु है--श्रम, समता भौर सदढृत्ति । श्रमण क्षद का सार इन तीना बिन्दुओं मे है। एक तरह से श्रम सत्य है, समता शिव है और सद्हृत्ति सौदय है। य तीनों सीढियाँ जीवन का पुृण बनाने वावी सीढियाँ है और जैन सस्क्ृति जो गुणा पर झाधारित है, प्रेरणा देना चाहती है कि आपका विकास आ्रापवी मुट्ठी मे है । सकरूप करा निष्ठा से श्रम--प्ुरुषाथ में जुट जाभ्रा । प्रापकी विशाल शक्तिया का प्रक्ट हाने से कोई नहीं रोक सकेगा । उन शक्तियो बे प्रकाश में आपका अपनी आत्मा का स्वरूप स्पष्ठ दिखाई देगा और तभी आप दूसरी आत्माआ मे मी समानता देष सकेगे प्रौर एक साम्यदृत्ति जागेमी 1 सभी के प्रति जागी हुई समानता कौ भावना भ्रापको सर्दव सदुष्र्तियो की राह पर वलपुवक ने जाएगी श्रौर प्राप ्रनुभव करग कि श्रम, समता भौर सद्दृत्ति की सीढिया आपके जीवन का ऊपर उठाती जा रहो है । यह है जैन-सस्क्ृति वी विधिष्टता जिसमे ग्रुणा का ही महत्त्व है। जिसमे गुरा हैं, वह किसी भी भ्रवस्था म हा--परीव या घग्गी साधु या ग्रृहस्थ--पूजनीय है । जिसमे गुण नही, जा जीवन-कला को नहीं जानता, यह यदि साधुवेष भी धारण किये हुए हो तो भी बदनोय या पूज- नीय नही हो सकता । याडम्बर व्यक्ति को कसौटी नहीं, वह कसौटी तो उसके गुणावगुण है ! श्रमण धब्द का भथ यही है कि श्रममय जीवन यापन




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