आधुनिक राज्य एवं राजनीति | Adhunik Rajya Aur Rajniti

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Adhunik Rajya Aur Rajniti by फ़्योदोर वर्लातस्की - Fyodor Varlatskiमोहन श्रोत्रिय - Mohan Shrotriy

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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15 का समाजशास्त्रीय विश्लेषण अस्तुत किया। राजतीति के क्षेत्र में मावसेवादके सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सिद्धांत हैं : (1) आधार एवं अधिरचना का सिद्धांत--राग्य, विधि एव राजनीति पर भौतिक वस्तुओं कौ उत्पादन प्रणाली के निर्णायक प्रभाव से संबधित, (2) राज्य, विधि एवं राजनीति के मायिक एव सामाजिक नौवन पर पारस्परिक संबंधों का सिद्धांत; (3) सामाजिक विकाप्त के बाधार के रूप मे बर्ग-संघर्ष (विशेषतया राजनीतिक संघर्ष) का सिद्धांत, (4) कांति के माध्यम से सप्ताजवादी राज्य एव स्वहारा राजनीति द्वारा दूर्ज्जा शज्य एवं बूर्ज्वा राजनीति के अरपरिहार्य विस्थापन का सिद्धात--साम्यवाद के জনন राज्य और राजनीति के ऋणिक विसजेन का सिद्धांत ! राजनीतिक प्रक्रिया के बाह्य रूपों के दर्णत का स्थान, इस तरह राज्य एव राजनीति के सामाजिक स्वरूप के वास्तविक वैशानिक विश्लेषण ने ले लिया ! प्लेखातोव की इतिहास मे जनता एवं व्यक्तियों की भूमिका सबधी अवधारणा तथा वर्ग, जनता एवं नेताओं के अन्योग्याथय को समस्या पर उनके योगदान का सत्ता एवं राजनीति के स्वभाव को समझ की दृष्टि से बुनियादी महत्त्व है । *राजनीतिक अर्थशास्त्र की समीक्षा' की भूमिका में माक्स ने लिखा था : “मुझे निरंतर सताने পা संदेहों के निराकरण के लिए मैंने जो पहुला काम किया छह था हीगेल के दक्षिणात्य दर्शन को अलीचनात्मकः सभीक्षा'''खोज एव पड़ताल ने मुझे इस निष्कर्ष पर पहुचाया कि विधिक संबंधों एवं राज्य के रूपों की समझ मे तो उनके स्वयं के आधार पर संभव है और न मानव विकास के तथा- कंयित सामान्य विकास (की अवधारणा) से । इसके विपरीत इनकी जड़ें जीवन की भोतिक परिस्थितियों मे निहित होती हैं, होगेल ने अठारहवी शताब्दी के अग्रेज़ एव फॉंसीसी चितकों की तऊं पर जिन्हें 'तागरिक संप्राज' का सार तत्व মালা। নাগটিক समाज की संरचता का स्लोत भी जवकि राजनीतिक अर्थव्यवस्था में निहित होता है।”* समस्त पूर्ववर्ती समाजशास्त्रीम सिद्धांतों ने राज्य के चास्तविक आधार को या तो अवदेखा किया या उसे प्रमुख न मानकर, तथा ऐतिहासिक प्रक्रिया से सोधे न जोड़कर, सहायक माना। कार भाकसे ने सिद किया कि शौतिक उत्पादन राज्य के रूपों का न केवल आधार होता है अपितु उनके चरित्र को निर्धारित भी करता है। मकसं के निष्कं ने शोयक संरचना को समीक्षा को क्रातिकारी रूप दिया तथा इस विचार का आधार प्रस्तुत किया कि एक नयो एवं उच्चतर थेणी में संत्रमण के लिए समाज की अवस्था परिपक्व हो चुकी थो। उष्मा ` ˆ রী. ৭ 1913,




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