शिक्षाप्रसाद शास्त्रीया उदाहरण की समालोचना | Sichha Sastriya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(५) तयोःसखुता शुभालापा देवकी कोकिलखना |. दापित वसुदेवाय कंसनमहताग्रहात्‌ ॥ ५२॥ इसका अर्थं पं० घनष््यामःदास जी द्वारा अनुवाद किये हुए पांडयपुराण के १७२ वें पृष्ठ पर इसप्रकार लिखा है। सगावती देश में दशर्ण नाम का एक नगर है| वहाँ का राजों देवसेन था और उस की रानी का नाम घनदेवी था। चह इन्द्र की इन्द्राणी जेसी थी। उसके एक पुत्री थी जिसका नाम था देवकी । उस के को पल मेघा सुन्दर स्वर था) वह बहुत ही अच्छा आलाप लेती थी | कंछ ने बड़े भारी आगम्रह से देवकी वसुदेव के लिये दिलाई थी । पांडवपुराण भाषा यौपाई वद्ध पं० घुछाकीदासजी रूत सन्धि १२ वे में लिखा है । कंस की बात । वापि जनक को ग्पेपुर थाषि। राज करत मथुरा को आप ॥ तब बसुदेवहि मथुरा आने । राख्यो धीति मगति चित आनि ॥ अब शुभ देश इृगावति जहां। नगर दसाणें वखत है तहां ॥ देवसेन कप तामे बसे । धनदेवी লিজ रानी लस ॥




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