सूक्ष्म (या व्यष्टि) अर्थशास्त्र | Micro Economics

Micro Economics by के. पी. जैन - K. P. Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अरयंशास्प कौ परिभाषा र श्वत परिभाषा ( ता >ष्टायद्रा1055) धन! परिभाषाएँ तथा उनकी व्याएया-- प्राचीन अर्थशास्त्रियों ने अर्थशास्त्र को “धन. का जाग (5०160९6 ० पया) कहकर परिभाधिः परिभाषित्‌ किया । अथशास्त्र के जन्मदाता एड्म, स्मिथ ने पनी पुस्तक कां नेमि सप्दूत के, घन के रबरूप तथा कारणों की खोज (4১5 8708117600৩ पण च्व ठतः 0 ४८७४४ ०1 (४४००५) रखा । अत. एडम स्मिय के अनुसार; अर्थशास्त्र = ८ = मे ¢ ॐ = १ च एन के उस माग कन नाम. जिसका सम्बन्ध धन से है ( ८ इन परिभापायौ से स्पप्ट है कि इस ण में धन पर विशेष घल दिया गया । रत परिनाषाओं की आलोचना 'पुड़म श्मिय तथा उनके सम्यकों की परिभाषाओं में कई कमियाँ थीं जिनके कारण उनकी गत्र आलोचनाएँ हुईं जो निम्नलिखित हैं: (१) इत परिभाषाओं मे घन पर आवश्यकता से अधिक जोर दिया गया, यहाँ तक कि धन.ऊो. মা (2०० कसती मंन तिपो ধা बरस्तु घत की. प्राप्ति साध्य नही बल्कि पान हैं जिसकी सहायता से मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की. पृत्ति करता है । धन पर, अव्यधिक _ जोर देमे के कारण काइुलाइल (0४79०), रसकिन (1२एअंध॥) आदि विद्वानों ने তাঘণালে নটা कुबेर को विद्या' (9059० ० शा) 'घुणितू_ विज्ञत' (ए0ञ्ाव! 80012०), “रोदी- - मन कृ शास्र (87९४५ धतं एणा ऽनंप्८९) कहुकर्‌ कड़ी. वालुोपुन की । (২) प्टम स्वि ने एक भिक मवुध्य' (६०००० क) की वह्सुना कट -डानी । उनके अनुसार परभुष्य धन की प्रेरणा तथा अपने स्वा से प्रेरित होकर ही बगय करता तया उनको स्वार्थ वृद्धि से सामूदिक हित में भी दृद्धि होती है। परन्तु ऐसा सोजवा.गतव-है । वास्तविक मनुष्य घन की जरण[ के अतिरिक्त अन्य भावताओं से भी प्रेरित होंता है तथा व्यावहारिक जीवन में व्यक्तिगत हिदों तथा सामूहिक हिति मँ पायः विरोधाभास माया जप्त है ১.8 (३) ये परिभाषाएँ अर्थशास्त्र के क्षेत्र को थहुत् संकुचित कर देती हैं वयोकि इतके अस्तर्गत कैवल उन्हीं मनुष्यों का अध्ययन किया जावेगा जिनका सम्बश्ध धन के ,उत्पादत तथा उपभोग से ह । इन स्व दो कै कारण श्वी ल्द फर जन्त में इन परिमापाओं है ~ 'कल्यारप! परिभाषाएँ ( 47 गि 11125) मार्शल प्रथम अधशास्त्री थे जिन्होंने १९वीं शताब्दी के अन्त में अर्थशास्त्र वो, अपयणश के মবিন निवल कर उसे एक आदरपयुक्त स्थान दिया । उन्होंने वत्ताया -कि घन भाध्य नहीं है, (जैसा कि प्रादीन अर्थ शास्त्रों सोचते थे), बल्कि चद्‌ माधनमात्ध है जिसकी सहायता से मानव कल्याण मे वृद्धि थी আা নবী ই ছল प्रकार, मार्शल ने घन पर से चत हटाकर मनुष्य तवा मनुष्य के हित 4 ৩005 15 ও 5816০. ০০2০০৩৫ আত चच लण्वृप्ो क इतत (ह याणतट जत्‌ ववपरष्टः ० ४.1१ 0 ०२१108१ वया 570 1 5 ठता (5 ৫1৩ সত জাত 16515 01 সা ~~. 9. ऽथ) 1 1 व 3 4 ४ ४ ९२11. ইতর ४४६९, ०४६० ८०० 1833




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