सुन्दर साहित्य-माला | Sunder Sahitya Mala

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Sunder Sahitya Mala by शिवनन्दन ठाकुर - Shivanandan Thakur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{ २४८ ) मे बहुत धीरे-धीरे समय वीतता हु्रा माद्धूम पड़ता है । इसीलिये हथिनी की धीमी चाल से तुलना की गद है । इसी प्रकार गर्भिणी का समय भी कष्टमय होने के कारण धीरे-धीरे वीतता हुआ पतीत होता है । शब्द्शाख (11101085) के किसी भी नियम के अनुसार हरु- आईं का अर्थ होने पर' नदीं हो सकता है । मैथिली में 'हरुआ- एवः क्रिया का व्यवहार हरे और सूखे गोबर से लीपना” अर्थ में होता है इस 'प्रकार 'हरुआइ' यदि विशेषण हो तो उसका रथं 'हरी-भरी' हो सकता है अथवा जिस प्रकार तुलसीकृत रामायण में “दद्‌ शरीर अति दी दरु” आदि पदों मं हर आई' का अथ हलकापन है उसी अकार यहाँ भी हलकापन (प्रसव) अथ हो सकता है । विद्यापति के अनेक पदों में ( वसन्त-वर्णन ) अनेक शब्दों का विशेषण (नव' है, जैसेः- नदरतिपति, नव परिमल नागर नव मनखछानिल्ल घर] नवि नागरि नवं नागर दिलसए पुनम क्ले वे स्वे पार। |! क्राप्दीन तारू सत्र पद १४ , नव बुन्दाइन नव नव तरुगण नव नव विकसित फूल नदल बसन्त नव॒ल मनश्रानिल मातल्त नव अलि-कूलछ। | ` विद्यापति पदावली पृष्ठ ६२ इस तरह संभव है कि यहाँ भी नवए! का अथ নিলা? नहीं होकर “नया” हो और इस अंश का अर्थ “नये महीने में




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