हृदय का कांटा | Hridaya Ka Kanta
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
65 MB
कुल पष्ठ :
170
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)| ( ११ )
परालती ने देखा, महेश के मुह पर एक अद्भुत भख रहा
है। उससे महेश के मुँह की तरफ और न देखा गया। एक
क्षण में उसका उठा हुआ सिर नीचे झुक गया। वह धीरे से
बोली--कहीं भी तो नहीं | मैं तो आप का कुछ काम नहीं
करती, जिनको करना चाहिये, वही करती ह । `
मालती का एक-एक शाब्द महेश के कनो मे गूज गया।
उनके हृदय में खंछबली मच गयी ! वह सोचने लगे--
` मारुती खच तो कहती ह । जिनको करना चाहिये वही सो
मेरा काम करती हैं। मालती के सिवाय और किसको मेरा काम
। करने का अधिकार है १ कया केवल आँवरें पड़ने से प्रतिभा को
। सब अधिकार मिल गया
| महेश ने जल्दी से दवा पी ली और चुपचाप लेट गये।
। मटती भी पज् लेकर फिर अपनी जगह पर बैठ गयी। उसके
| मन में महेश वाला प्रइन बार-बार उठ रहा था--मेरे लिये तुझ्ह
इतनी चिन्ता क्यों है जो रात रात भर जागती हो ? जिनको
`, देनी चाहिये वह तो आशम से सोती हैं।
._» मालती अपने मन से आप ही पूछने लगी--ठीक জী ই।
„ मुञ्चे इतनी चिन्ता क्यों है जो में लाख बहाने करके इनके पास
बैठी रहती हूँ ? हाँ, मुझे इनका काम करने का कया अधिकार है ?
मालती चुपचाप महेश की तरफ देखने छगी । थोड़ी देर
बाद उसके मन में फिर विचार उठा--अच्छा, माना | मुझे
इनकी सेवा करने का कोई अधिकार नहीं है, तो भी क्या सेवा
करना पाप है ? इन्दे मेर काम इतना बुरा क्यो लगता है ?
माकती ने फिर महेश की तरफ देखा । इस बार महेश कुछ
जप्नते हुए मालूम पड़े | महेश सचमुच में जाग रहे थे ओर आखें
बन्द किये सोच रहे थे-प्रतिभा, तुम किस घमंड में भूली
3).
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