हृदय का कांटा | Hridaya Ka Kanta

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Hridaya Ka Kanta by कुमारी तेजरनि दीक्षित - Kumari Tejrani Dixit

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about कुमारी तेजरनि दीक्षित - Kumari Tejrani Dixit

Add Infomation AboutKumari Tejrani Dixit

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
| ( ११ ) परालती ने देखा, महेश के मुह पर एक अद्भुत भख रहा है। उससे महेश के मुँह की तरफ और न देखा गया। एक क्षण में उसका उठा हुआ सिर नीचे झुक गया। वह धीरे से बोली--कहीं भी तो नहीं | मैं तो आप का कुछ काम नहीं करती, जिनको करना चाहिये, वही करती ह । ` मालती का एक-एक शाब्द महेश के कनो मे गूज गया। उनके हृदय में खंछबली मच गयी ! वह सोचने लगे-- ` मारुती खच तो कहती ह । जिनको करना चाहिये वही सो मेरा काम करती हैं। मालती के सिवाय और किसको मेरा काम । करने का अधिकार है १ कया केवल आँवरें पड़ने से प्रतिभा को । सब अधिकार मिल गया | महेश ने जल्दी से दवा पी ली और चुपचाप लेट गये। । मटती भी पज् लेकर फिर अपनी जगह पर बैठ गयी। उसके | मन में महेश वाला प्रइन बार-बार उठ रहा था--मेरे लिये तुझ्ह इतनी चिन्ता क्‍यों है जो रात रात भर जागती हो ? जिनको `, देनी चाहिये वह तो आशम से सोती हैं। ._» मालती अपने मन से आप ही पूछने लगी--ठीक জী ই। „ मुञ्चे इतनी चिन्ता क्यों है जो में लाख बहाने करके इनके पास बैठी रहती हूँ ? हाँ, मुझे इनका काम करने का कया अधिकार है ? मालती चुपचाप महेश की तरफ देखने छगी । थोड़ी देर बाद उसके मन में फिर विचार उठा--अच्छा, माना | मुझे इनकी सेवा करने का कोई अधिकार नहीं है, तो भी क्या सेवा करना पाप है ? इन्दे मेर काम इतना बुरा क्यो लगता है ? माकती ने फिर महेश की तरफ देखा । इस बार महेश कुछ जप्नते हुए मालूम पड़े | महेश सचमुच में जाग रहे थे ओर आखें बन्द किये सोच रहे थे-प्रतिभा, तुम किस घमंड में भूली 3).




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now