कामता प्रसाद गुरु | Kamta Prasad Guru
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
170
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हमारे पिता-श्री ¢ ५
उडीक्षाजल्नेत्र का अल्प जीवन उनके लिए साहित्यिक তু উই লাখসও
अनश्य रहा । उडिया भाषा का भहन चाान प्राप्त करना पहुत॑ बडी उपलब्धि
रही | पार्वती और यशोदा नाम से उनने उडिया के प्रसिझ स्वियोषयीनी
उपच्चास का अनुवाद किया | जरिट्स शरदाचरण मित्र के देवनागर में उडिया
भाषा के कुक नित्रध भी उत्तके निकले । चाम॑ल स्कूल में हिन्दी भाषा-
अध्यापन, शिक्षण पद्धति तथा सबर्बित विषयों में उत्तको दक्षता की भू-भू
प्रशस। हु६ 1 उनके सहयोथी श्रौर शिष्य हिन्दी साहित्य क्षल मे ६५५ के
मामीदेार हुए. शालप्राम हिवेदी, हरित दुबे, जहुरवब्ग, स्वर्ण सहो५<,
अमृतनालदुनें, नर्मदश्रसाद मिश्र, चर्भदाप्रताद खरें। अचुशासन-भिषता,
आडम्बरहीचता, समथशीलता और स्पण्टवादिता उनके शिक्षक-गीवच के পু
करणीय विशिष्ट भुण थे जिनकी रेपण्ड छाप उनके सम्पक में आये व्यक्तिथी
ओर शिष्यो ५९ ५डी ।
शिक्षक-जी वन की लबी अवधि में दो 41९ पिताजी साहित्य-क्षत में
प्रयोगात्मक &प से जीविका के लिए छुट्टी लेक गये | नये अचुमेच हुए, साहि-
त्विक जीवन के अचुर अचुभव हुए, अनक साहिप्थिका का सम्पक विला चर
स्वभाव से शिक्षक जीवन से ही अनुकूलत्त। ५४ और वे ष्टी समाप्त होने के
एवं ही अपने जबलपु< के चार्भज स्कूल और माडल हुई स्कूल में लौट श्राये ।
ची॥१५९ ५५ हिन्दी ग्रथवाला में कार्य करने और परोक्ष रूप से हिन्दी केसरी
में सहयोग देने खीर अवास गये सरस्वती शरीर वालसख। का सेपादते भार
এখন | লব নে নন আস था परम हितेषी श्री साधवराव सप्रे का
ओर अथाग चुजाने में आभ्रह-प्रेरणा थी आचाय महावीर रसद द्विवेदी की |
ছল दो रथासो का साहित्यिक लाम अत्यविक प्रभावशाली और स्थायी रहू। ।
उच्च समथ के प्रभुख साहित्व-सेवियों से श्रभिनता तो हुई ही, साथ ही पिताश्री
को अपची साहित्य-पूजा के लिए पर्याप्त सामश्री मी मिली जिसके बल पर वे
स्थाकरुण-श्राराव्य को प्रसल कर सके। लक्ष्मीबचर वाजपेयी, जगनायश्रसाद
सुतस, लत्जीअसनाद पाडेय, देवीदतत शुबण, देवीअस्ाद शुक्ल, डॉ मजे आदि
से निक८ की आत्मीवता इच अवसर १९ हुई। १६१४ में लखनऊ हिन्दी
साहित्य सम्मेलन के अधिवेशन में सम्मिलित हुए जहाँ मनोनीत सभापति श्री१९
५।८न से व्याकरण विंपयक चर्चा हुई और खुले श्रविवेशव में व्याकरण और
हिप्दी पर अबना चिन्नन३र्ण लेख पढा | १६१६ में जबलपुर के सप्तम हिन्दी
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