अथर्ववेदभाष्यम खंड 6 | Atharwedbhasyam Khand 6
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
58 MB
कुल पष्ठ :
364
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ৭৩9 ] সত ৪ षष्ठं काण्डम् ग 4 ( ९९८३ )
भ षाथं-( त्वष्टा ) सच का बनाने वाला, ( पज्ञन्यः ) सीखने चालला
( ब्रह्मणः) ब्रह्माण्ड का ( पति; ) रक्षक, ( अदिति: ) अविनाशी परमेरव
(( पुत्री; ) पुत्रों ओर (भ्रातृभिः) श्राताओं के खहित (में ) मेरे ( देव्यम )
देवताओं के हितकारक ( वचः ) वचन को ओर (न: ) हमारे (বাংল)
अजेय, ( त्रायमाणाम ) रक्षा करने वाले ( सहः ) बल्ल की ( तु ) शीघ्र ( पातु )
रत्ता करे ॥ १॥
सावाय--सब मलुष्य परमेश्वर की उपासना प्राथेना करते हुये पूर्ण बल
प्राप्त करके अपने कुटम्बियों की रक्षा करे ॥ १॥
उसो नगो वरुणा मित्रो अर्थ सादिति: पानन्त मरुतः ।
अप तस्थ दूषा गमेद्सिह ते यावयच्छन्न॒गन्तितस् 0२७
श्य; । भगं; । वद॑शः । जिचः । आर्य मा। अदितिः । पान्तु ।
मरुत॑ः । अपं । तस्यं । द्वंषः । गमे त् । सि-हुतः। य॒वयत् ।
জাল म् । अन्ततस् ॥२॥ है
भाषाथ--( अंशः ) विभाग करने वाला, ( भगः ) सेवने योग्य (वरुणः)
अपान वायु, ( मित्र; ) प्राण वायु, ( अयमा ) अन्धकार नाशक सूर्य, ओर
( अद्ति। ) अदीन भूमि ( मरुतः ) शर देवताओं की ( पान्तु ) रक्चा करें।चे
( अभिहु तः ) कुटिल शील ( तस्य ) हिखक चोर के (द्वंषः ) दुष्टता को
म
९--( त्वष्टा) अ० २।५।६ । स्वंखष्टा (मे) मम ( दैन्यम् )
देव-यञ. । देवहितम् ( वचः) वाक्यम् ( पर्जन्यः) आ० १।२। १ । सेचकः
( ह्मणः ) रदस्य जगतः ( पतिः ) पालकः ( पुरै; ) अस्माक सुतैः संह
( भ्रातभिः) खूहोदरेः ( शरदिः) अण २।२८। ४। छ्विनःशी परमेश्वरः
( ख ) क्लिष्रम् ( पातु) रत्तु (नः) अस्माकम् ( दुस्तरष् ) दुस्तरणीयम् ।
अजेयम् ( त्रोयमाणम् ) रक्तकस् ( सह: ) बलम्॥
२--( अंशः) विभाजकः (सगः) सजनीयः । सेवनीयः (वरुणः) अपानः
( मित्र; ) प्राणः ( अयमा ) अ० ३ । १७ । २ । अन्धकारनाशक आदित्य:
(अदितिः) श्र० २।२८] ४। अदीना भूमिः (पावतु ) रक्नन्तु ( मख्तः ) ऋण १५।
१० | १। शूरान् देवान् ( भ्रप ) दूरीकरणे ( तस्य) तद् हि सलायामू-ड ¦ हि स-
र
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