ज्वालामुखी | Jvala Mukhi

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Jvala Mukhi by बाबू दुर्गाशंकर प्रसाद सिंह -Babu Durgashankar prasad singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भग्न-हदय लेखक की सिसकियाँ तो राजत्र का चुटीली हैं ! उनकी कमनीय कल्पनाएँ तो श्रौर भो हृदयग्राहिणी हैं। इसके पाठ से जहाँ एक ओर साहित्य-रस-रसिक सुविज्ञ पाठकों को ललित गद्य काव्य के रसास्वादन का आनन्द उपलब्ध होगा, वहाँ दूसरी ओर नवनीत-हृदय सहृदय सज्जनों का चित्त भी एक विरहानल-दग्घ हृदय की ज्वाला से द्रवीभूत हुए बिना न रहेगा । लेखक महाशय हमार ज़िल ( शाहाबाद, बिहार - प्रान्त ) के एक सुप्रतिप्ठतित रइस और बड़े होनहार तथा उत्साही युवक हैं--सन सत्तावन के दरादर के प्रसिद्ध विहारी नेता उज्जैन-बंशावतंस क्षात्र-धम- धुरन्धर वीरवर बाबू कुंवरसिह के बंशघरों में से । ক बाबू नमदेश्वरप्रसादर्सिहजी ( 'इश'-कबि ) बड़े ही प्रगाढ़ विद्वान, सुकवि, गुणग्राहक, साहित्य-ममन्ञ, कला-रसिक, विद्याव्यसनी और कवि-को विद-सत्कार परायण थ } उनका 'धमप्रदशनीः नामक पांडित्यपशा




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