भास की कृतियों में चित्रित भारत वर्ष एक विश्लेषणात्मक अध्ययन | Bhaas Ki Kritiyon Mein Chitrit Bharat Varsh Ek Vishleshanaatmak Adhyyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
114 MB
कुल पष्ठ :
344
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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इस कथन मं रसात्मक वाक्यरूप काव्य की स्वना -प्रक्रिया पर तो प्रकाश
अवश्य डाल रहा है किन्तु - वाक्यं रसात्मकं काव्यम् इस उक्ति म काव्य
का रहस्य अनिर्भिन्न सा ही रह जाता है, वस्तुतः महामहोपाध्याय इा0 काणे
ने इसलिए कहा है -
7110০ 06010101010 018. 16৬1 ৮/010519, 02101001911 68115 00935 0621 হাত
জপ ৪3 ০0108115 101017117610. /1)116 00175155159 10016. 71010110500 10 शब्द
301076 51৮০ ৪. 06110110100: কান্ত ৮/101010 19 10001601001 00917 006 00175 10
05 98750 (50101 95 0781 ০1 विश्वनाथ (वाक्यं रसात्मक काव्यम्)!
दण्डी ने काव्य हेवुओं का विश्लेषण काव्य सम्पति की
कारण रुपता के नाम से किया है। उनके मताबुसयार नैसगिकी
१
प्रतिपा, व्यापक छव परिशुद्ध अध्ययन तथा प्रगाढ़ अभ्यास का
समुदिति रूप काव्य सम्पदा के हेदुक्षृत है
स्वभावसिद्ध सहजा प्रतिभा का नाम ही कवित्वशक्ति है जो पूर्वजन्मों
के संस्कारों से उत्पाद्य तथा नवनोन्मेषशालिनी प्रज्ञा के नाम से भी अभिहित
की जाती है। बहुविध काव्यशास्त्रों के अध्ययन तथा अनुशीलन एवं संशय
विहीन श्रुतज्ञान के कारण भी काव्य वैभव का विस्तार होता है।
दण्डी द्वारा प्रतिपादित बहुश्रुतत्व पद व्युत्पत्ति का पर्याय है जिसे
भामह, रुद्रट ओर वामन आदि आचार्यो ने अनेक विधाओं के सन्दर्भ मे
विवेचित किया हे। दण्डी ने अमंद अभियोग को श्रम तथा अभ्यास भी कहा
दै। कालान्तर मेँ प्रतिभा, श्रुत ओर अभियोग शब्द भिन्न-भिन्न नार्मो से
विवेचित किए. गये जिनका विविध आचार्यो द्वारा प्रतिपादित काव्य हेतुओं
प्रसंग यथास्थान निरूपित हुआ है। दण्डी की मान्यता ठै कि - य
किसी कवि
गुणानुवन्धी अदृष्त प्रलिशा न ॐ ढो को ® वह काल्यः 27
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` कव्कादर्थ ~ दण्डी ~ 103
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