प्रेरणा | Prerna

Prerna by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्ररणा श७ मगर अब पक्का आस्तिक हो गया था। वह बड़े सरल भाव से पूछता परमात्मा सब जगह रहते हैं तो मेरे पास भी रहते होंगे । इस प्रश्न का मज़ाक उड़ाना मेरे लिए असम्भव था । मैं कहता-- हाँ परमात्मा तुम्हारे हमारे सबके पास रहते हैं और हमारी रक्षा करते हैं । यह पाकर उसका चेहरा आनन्द से खिल उठता था । कदाचित वह परमात्मा की सत्ता का अनुभव करने लगता था | साल ही भर में मोहन कुछ-से-कुछ हो गया । सामा साहब दोबारा आये तो उसे देखकर चकित हो गये । आँखों में आँसू भरकर बोले-अबेटा तुमने इसको जिला लिया नहीं तो मैं निराश हो चुका था । इसका पुनीत फल तुम्हें इंश्वर देंगे । इसकी माँ स्वरगे में बैठी हुई तुम्हें आशीवीद दे रही है । सूयेप्रकाश की आँखें उस वक्त भी सजल हो गई.थीं । मेंने पूछा मोहन भी तुम्हें बहुत प्यार करता होगा ? सूयंप्रकाश के सजल नेत्रों में हसरत से भरा हुआ ध्रानन्द्‌ चमक उठा बोला--वह एक मिनट के लिए भी न छोड़ता था | सेरे साथ बैठता मेरे साथ खाता मेरे साथ सोता । मैं ही उसका सब कुछ था । आह वही संसार में नहीं है । मगर मेरे लिए बह अब भी उसी तरह जीता-जागता है । में जो कुछ हूँ उसी का बनाया हुआ हूँ । अगर वह देवी विधान की भाँ ति मेरा पथ प्रदशंक ल बन जाता तो शायद झाज मैं किसी जेल में पड़ा होता । एक दिन मैंने कदद दिया था--झगर तुम रोज नहा न लिया करोगे तो मैं तुमसे न बोल्गा । नहाने से बह न जाने क्यों जी चुराता हर ल्‍




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