प्रेरणा | Prerna
श्रेणी : कहानियाँ / Stories, लघु कथा / Short story
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21.44 MB
कुल पष्ठ :
236
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्ररणा श७ मगर अब पक्का आस्तिक हो गया था। वह बड़े सरल भाव से पूछता परमात्मा सब जगह रहते हैं तो मेरे पास भी रहते होंगे । इस प्रश्न का मज़ाक उड़ाना मेरे लिए असम्भव था । मैं कहता-- हाँ परमात्मा तुम्हारे हमारे सबके पास रहते हैं और हमारी रक्षा करते हैं । यह पाकर उसका चेहरा आनन्द से खिल उठता था । कदाचित वह परमात्मा की सत्ता का अनुभव करने लगता था | साल ही भर में मोहन कुछ-से-कुछ हो गया । सामा साहब दोबारा आये तो उसे देखकर चकित हो गये । आँखों में आँसू भरकर बोले-अबेटा तुमने इसको जिला लिया नहीं तो मैं निराश हो चुका था । इसका पुनीत फल तुम्हें इंश्वर देंगे । इसकी माँ स्वरगे में बैठी हुई तुम्हें आशीवीद दे रही है । सूयेप्रकाश की आँखें उस वक्त भी सजल हो गई.थीं । मेंने पूछा मोहन भी तुम्हें बहुत प्यार करता होगा ? सूयंप्रकाश के सजल नेत्रों में हसरत से भरा हुआ ध्रानन्द् चमक उठा बोला--वह एक मिनट के लिए भी न छोड़ता था | सेरे साथ बैठता मेरे साथ खाता मेरे साथ सोता । मैं ही उसका सब कुछ था । आह वही संसार में नहीं है । मगर मेरे लिए बह अब भी उसी तरह जीता-जागता है । में जो कुछ हूँ उसी का बनाया हुआ हूँ । अगर वह देवी विधान की भाँ ति मेरा पथ प्रदशंक ल बन जाता तो शायद झाज मैं किसी जेल में पड़ा होता । एक दिन मैंने कदद दिया था--झगर तुम रोज नहा न लिया करोगे तो मैं तुमसे न बोल्गा । नहाने से बह न जाने क्यों जी चुराता हर ल्
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