सार्वदेशिक साप्ताहिक ३५ , १९९६ | Sarvdeshik Saptahik 34, 1996

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Sarvdeshik Saptahik 34, 1996 by केवारनाथ साहनी - Kevarnath Sahni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ह माच ६६१६६ शार्यदेशिस शाव्ताहिक ८: 4 ই सावं देशिक सभा के कार्यकारी प्रधान एवं सुप्रीमकोर्ट के वरिष्ठ ग्रधिवकक्‍्ता श्री सोमनाथ मरवाह द्वारा दिया गया- श्वेतपत्र का उत्तर (१५) इन हालातों मे आप यह কব ক্ষ सकते हैं कि १०६ वोटर ये जिनमे से २० अस्वीकार किए बए, फिर किस आधार पर विद्यानन्द जोता । यद्चपि जब तो विच्चानस्दने स्वय ही जायं समाज की सश्स्यता ते ध्यायपत्र हे दियादहैजोकि नवभारत टारईम्सके २५ अनवरीकंदक में प्रकाशित हुआ ओ निम्न प्रकार है- भ्रायसमाज की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा तई विल्ली, १६ जनवरी । आये समाज के वयावुद्ध नता ओर वेद ब्याक्याता स्वामी विद्यानन्द सरस्वती न आग समाज की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया | छात्र जीवन से आये समाज से जुड़ें स्‍्वामी जी ने समभग छाठ वषं भाप सभाज के लिए काम फिया और विभिभ्न षदो पर रहे।' मैं आये जनता को यह भो बताता भावश्यक समक्षता हु कि अदालत ते विशद्यानन्द से आगामो ६ अप्रल ६६ को सदस्यता के सम्बन्ध में प्रमाण प्रस्तुत करने को कहा है, गौर विद्यानम्द फी सदस्यता ही ब्यावर नायं समा से फर्जी थी इसी डर से उन्होने अपना त्याग पत्र दिया है। कष्टन देवरल्न भौर सुमेष्ठानन्द का एक से एक बयान शठा साबित होता है; २ जुन ६४ बाले समाचार मे तो यह भी पता नहीं चलता कि चुनाव वस्देमातरम्‌ जी था किसी और व्यक्ति की अध्यक्षता में हुआ | और क्या ओ प्र सीडेस्ट आपने चुना उसको दाकी श्र्रित्गरी चनने का भी अधिकार दिया दया | यदि आपको मालूम नही था तो अपने साथिया से पूछकर लिखते कि २० धभासद, अवेधानिक किसने घोषित किए और उनके क्या ताप्र थे । विज्ञानन्द के अनुसार सप्ना प्रधान ही सभासदों की मजूरी ओर न मजूरी का अधिकार रखता है। और जो क्रोसीडिग अदालत में दाखिल की बई है उसके अनुसार १८० सभासद तथा ए विद्विष्ट कुल १८४ सभ।सद उपस्थित बे न कि १९०, यह भो गलत है कि तविलनाड़ के £ सभासद थे, जबकि तमिलतांड्‌ के १४ सभांसद ये । भापाल क॑ श्री स्वामी सत्यानन्द महरूफी बयान भी दिया है कि विद्या नम्द बाला चुनाव बिल्कुल बोगस है और आने फिर भी उन्हें उप प्रधान बताया है । जबकि बहू सही सभा क॑ उपप्रधान हैं। भाप अपने पिता के का को आगे बढाने के वजाय खराब कर रहे, हैं, यह आपको शोभा नही दता আন গান ভা চলা কং 1 एक तरफ तो सुमेघानम्द मुकदमेबाजी कर रहा है ओ द्वूतरी तरफ आप उसको तन्पासी पहुते हैं। मैं दावे से कह सकता हू कि यः समाज के सम्बन्ध में उससे ज्यादा तो आपको जानकारों है वह গার ৮ के रिषय में कुछ मही जानता जवि नौकरी न मिलने प उमम केवल $ग्ड ईहतनिए्‌ बदले कि इस बेक्ष से बहू सभा तथा आये समाजा का रुपया एवं उनकी जायदाद अच्छी तरह से हृडप कर सकेधा और यही कारण है 6 हुवाई अहाज की पात्राओं पर हजारो रुपए तथा अपना फोटा छपवान के [ए मधुर लोक অজানাহ কী ২০০০/ २० तथा जो दावा १४ रुपएमे हो सकता था उस पर ३३६० /- की कोर्ट फीस लगाई बई । तो क्‍या किसी ने आज तक सुमधा- नन्द से यह पूछने का प्रषास किया कि यह प्रेसा +हा से आया ”? भौर बह किसको धलाह पर मुकदमें कर रहा है। उससे अपने एक दावे में हल्फतामा बतौर प्राम सावा और जब मैंने उप पर आपत्ति की तो उसने उस पेज को विकासकर तया पेज लगना दिया जिसमे अपने आपको उसने सेक्ेटरी लिखा । इसके लिए उसके तथा उसके वबीन के खिलाफ फौयबारी का शावा श्र दिया द्या है, अब कहा गहीं जा सकता कि कद पुलिस इन व्यक्तिषः के विरद एफ ० जाई, और० दर्य करके इन्हें विरक्‍्तार कर थे। केप्टन साहब जैसी कि श्री भगवती प्रसाद म्रुप्त ने आपको सलाह दी थी वह बड़ी नेक और सही सलाह थी कि आप ऐसे व्यक्तियों का साथ छोड दे और अच्छे व्यक्तियों का साथ द । बडे आश्चर्ष की बात है कि जिन व्यक्तियों के माम २९ मई €॥ को लिखकर रजिस्ट्रार को दिए गये थे उसम श्री विनोद बिहारो भटनागर धुपुत्र श्री र गीलाल का नाम सिश्वा गया है जो कि स्वामी दीक्षानग्द के रिश्तेदार है जिन लोगो ने ९ जून ६५ को सभा कार्यालय पर कब्जा करने तथा डाका डालने जैसा कार्य क्या उसमे श्री राजपाल झास्त्री के सुपुत्र श्री मधुर प्रकाश भी झामिन थे । श्री राजपाल जी मधुर लोक” नामक पत्रिका छपते है और आबे समाज सीताराम बाजार भे उनकी किताबों की दुकान है । परम्तु इत दोनो व्यक्तियों ने जानते हुए कि पह सब चुनाव बाली लिस्ट फर्जी है और भी मधुरप्रकाश् जो कि उस लि्ट में नही हैं,बह भी जुर्म करमे में ध्वामिल हुए, तो इससे आप स्वथ हो अन्दाजा लगा सकते है इनके सभा- सदा में कितनी सच्चाई है। फ्रि भरी आज का कोई सन्यासी या कोई भौर यहू नहीं कह रहा कि यहू चुनाव जिसके विषय मे कहा जा रहा है झि कंप्टन देवरन की अध्यक्षता में हुआ यह सब फर्जी है। मैने अपने लेख में लिखा है कि मैं स्वामी भोमानन्‍्द के खिलाफ जो पत्र मुझ मिले है वह मैं लिखने को तैयार नहीं हुआ परमश्तु जो पत्र बरृद्कुल झज्जर के परमह्वितंषियों ने लिखा है उसमे उम्होने स्वामी धर्मानम्द के विषय सेभी नीचे लिख क्षब्द लिखे है, उका भी उत्तर उन्ही को देना बिए, वह क्षब्द इस प्रकार हैं-. “स्वामी धर्मानन्‍्द (उड़ीसा) जिसे लगभय ३० वर्ष ঘুষ चरित्रहीनता के आरोप में गुरुकुल से निष्कासित किया गया था तथा जो कस्या ब्रेल आम सेना उडीसा की एक अध्यापिका शारदा के साथ गबंध सम्बन्धो के लिए चित रहा है को आजाय' पद पर नियुक्त करने का निणेय लिया था, परस्तु अनता के दबाव के आगे यह नि्णंथ बदलने को स्वामी बोमानम्द को मजबूर होना पडा“ परन्तु जो पत्र प० कीरेष्र कुमार पाडा मन्त्री उत्कल भाय प्रतिनिधि सपा (उड़ता) वाने न ६-१२-६५ को श्री वश्मातैरमू ज प्रधान জার देश्विक सभा को लिखा है, उस पत्र को मैं श्रवश्य लिखना चाहता हू, और वह इस तरह है जिससे घह साबित होता है कि जैसे सुमेघानन्द ने फर्जी नाम सभासदो के भेजे थे हसी तरह धर्मानग्द ने भी फर्जी नाम सभासदो के भेजे हैं। चेवा मे माननीण श्री वन्देमातरम्‌ रामचन्द्राद जी प्रधान सायदेशिक आये प्रतिनिधि सभा सहधि दया नम्द भवन, नई दिल्‍ली, विषय उत्कल आर्थ प्रतिनिधि सभा को साम्यता प्रदान करने के सम्बन्ध मे । प्रहोदय, निवेदन हैं कि पिछले दिनों स्वाभी धर्मानम्द मे उडीसा प्रास्त की बाद समाजो को बिना सूचना दिए उत्कल आय॑ प्रतिनिधि सभा का बोगस चुनाव करके अपने को प्रधान घोषित करके बोबस प्रतिनिधि साबंदेशिक सभा में जेजे ये इस प्रकार स्वामी वर्मानस्व अवैधानिक रुप से उत्कल भाय' प्रति. निधि उत्ता का अपने को प्रधान बहते हैं । उत्कच जथ तिनिधि स्रन्मा का बेधान्कि रुप सै निवर्चिन १७-७-१४॥ को सम्पत्य हुआ विष्ये प्रान्त की ६६ थादं समालों के प्रतिनिधियों दे षाव (बेर पृष्ठ ४ पर)




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