गृहस्थ जीवन | Grahast Jeewan

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Grahast Jeewan by चीमनलाल लक्ष्मीचंद - Cheemanlal Lakshmichand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ उस शत्ति या संस्कारकी असर होती है । दस लिये बाछ॒क को स्तन- पान कराते समय कुटुम्ब कछहके, पड़ोस सम्बन्धी झगड़े टंटेके, सास नणंद सम्बन्धी वैमनस्यके एवं पति सम्बन्धी अनबनाव के हानि कारक अनिष्ट विचारों का परित्याग करके किसी पवित्र शास्त्र सम्बन्धी, किसी श्रेष्ठ हुन्चर उद्योग सम्बन्धी या किसी उपयोगी विद्या सम्बन्धी किवा किसी धर्मशाख्र सम्बन्धी प्रशस्त विचार रखनेकी आवश्यकता है। अथवा स्तनपान कराते समय पविच्र महात्माओं एवं महापुरुषो के शुण चिन्तन करनेकी जरूरत है। नीतिमान, भक्तिमान, दयावान, सत्यवादी एवं सरछ स्वभावी धर्मिष्ठ पुरुषोका या उनके महान्‌ गुणोंका चिन्तन करते ह॒ये मेरा पुत्र भी वैसा ही महान बने इस प्रकारकी हृद भावना रखने की अत्यावश्यकता ह। स्तनपान कराते समय पूर्वोक्तं भावनाया खड संकल्प रख- नेसे अवदय टी तथा प्रकारकी संतान पेदा होती है इस बात पर रट विश्वास रखना चाहिये। यह तो सिद्ध ही हो चुका कि मातके चुरे या भे मनोभाव का प्रभाव अवदय दी वाटकके कोम हदय पर पडता है, उसकी चुरी या मी मानसिक वृत्ति स्तनपान कराते समय दुधके साथ ही वाछक के दिमाग पर अपना बुरा या भछा प्रभाव अवश्य डाछती हैं। इस छिये अब माताको चादिये कि जब तक वह बाछक स्तनपान करता है तब तक याने पकसे सवा वभर पर्यन्त तो अवद्य ही उत्तम विचार, उत्तम आचार तथा उत्तम प्रकारके ही कायो तरफ अपनी मनोवृत्ति रक्खे ओर अपने अन्दर यदि कोद खराब आदत पड़ी हुदरेटो तो उसका सत्वर परित्याग कर सद्‌ गुण वारी आदत रक्‍खे ता कि महान पुरुष होने वाछा उसका प्रिय बाछक दुगेणों से बच कर सद्गुणों का पात्र बने । बाछक का जीवन घड़ते समय यदि किसी प्रकारकी चुटि रह गई तो फिर बह जिन्दगी भर नहीं सुधर सकती ओर उस दोषका भार उस बाछक का जीवन घड़ने वाले उसके माता पिता पर ही रहता है । माताकी गोद छोड़े बाद बालक खेछता हुआ एवं आनन्व करता हुआ सारे घरमे फिरता है तथा घरके तमाम मलुष्यों के परिचय में




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