काव्य निर्णय | Kavyanirnay

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Kavyanirnay by खेमराज श्री कृष्णदास - Khemraj Shri Krishnadas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ काव्यनिर्णय । वहीं बात सिगरी कहे, उलथा हांत यकेक । सम निज उक्ते बनायहूं, रह सुकालिपत शंक ॥६॥ याते द मिधित न्यो, क्षमिहं कवि अपराधु । बन्यां अनबन्यां समुझिके, शधि हिमे पाघु॥७ कृबित्त-मोसम जुहुह ते विष्ेषघुख पहं पनि दिदूपाति सदेवके नकि मनमानोदै ॥ याते परतोष रसरानरस डीन वशेषस प्रकीन परे क्विन्‌ बखानाह ॥ तते यह उदयप अकारथ न नेहे खव भाति उरई অতি ভাই अञषा- লাই ॥ आगेके एुकवि रोद्ध तो कविताई न तां राधिका कन्हाई सुमिरनकों बहानाह ॥ ८ । दोहा-ग्रंथ काव्यनिणयाह जो, समुझि करेंगे कृंठ | सदा बहगा जारता, तारसना उपकठ ॥ ९ ॥ काव्यप्रयोजन ॥ संवेया ॥ एक लहे तप पुंजनिके फल ज्यों तुलसी अरू सर गोतधां३॥ एफ लहे बहु संपति केशव भूषण ज्यों बरबीर बडाई ॥ एकनिको यशहीसों प्रयोजन हे रसतानि रहीमकी नाई ॥ दास॒ कदि तन चसच बुषिदृतनक्ी सुखदे सब ठाईं॥ १० सोरठा-प्रशु ज्यों सिखने वेद, मित्र मित्र ज्यों सतकथा । काव्परसनिको भेद, सुख पिख दानितियानि ग्यों ३ १ ॥ सवेया ॥ शक्ति कवित्तयनाइबेकी ज्याह जन्म न्म दीनी ।वधात्‌॥ काव्यकी रीति सिख सुकवीनते देखसुनबहुछोकर्काबातें॥




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