हरियाणा लकमंजरी कहानियां | Hariyana Lokmanjary Kahaniya

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : हरियाणा लकमंजरी कहानियां  - Hariyana Lokmanjary Kahaniya

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about राजाराम शास्त्री - Rajaram Shastri

Add Infomation AboutRajaram Shastri

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
| त | अपितु आत्ामिव्यक्तिके साधनसे है । चाहे वह शब्दों द्वारा हो अथवा बिना शब्दके | कई स्थानों पर हजार शब्द मिलकर भी वह भाव व्यक्त नहीं कर सकते जो केवल किसी विशेष अ्ंगकी एक भंगिमा मात्रसे व्यक्त हो सकता है। इसीलिए, अपनी विशेष मंगिमा मात्र लेकर मंचपर अवतीण होनेवाले मूकपात्र दर्शक पर जो प्रभाव छोड़ जाते हैं वह अधिक बोलने- वाले पात्रोंसे भी शायद सम्भव नहीं | कई नाठकोंमें निर्जीव पदार्थोका भी वह्‌ प्रभाव देखा जाता है जो शायद सजीव पासे भी सम्भव न हो। मेरे 'बड़बेरी' एक पात्रीय नाय्कमें एक ठूंठ जो प्रमाव छोड़ जाता है। वृह दशनीय द | ह बात स्वयंसिद्ध है कि किसी भी साहित्यिक कृतिके लिए. कहानी, पात्र, कथोपकथन आदि सब गौण पदाथ हैं। साहित्यकारका एकमात्र कर्तव्य रह जाता है मावाभिव्यक्ति और भाव पुष्टि | चाहे वह शब्द द्वारा हो अथवा निःशब्द | वातावरण निर्माणसे हो अथवा किसी अन्य प्रकास्ते | उसके लिए. यह आवश्यक हो जाता है कि अपने दशकों अथवा श्रोताओं - को देश, काछ आदिकी परिधिसे ऊपर उठाकर सर्वदेशीय, सावकालिक स्थितिमें ले जाये। केवलूमात्र घटना अथवा वातावरणका वर्णन उसका कतव्य नदीं । बह किसी राजा-महाराजा अथवा धनिकका बन्दीजन नहीं, और गरीबों और मज़दूरोंका वक्री७ हो है। वह है केवलमात्र और सच्चा भावाभिव्यक्तिकार | उस भावाभिव्यक्तिमें राजा-महाराजा और सेठ- साहूकारको किसी अंशमे प्रशस्ति भी हो सकती है और गरीब मजदूरोंका क्रन्दन भी । किन्तु वह सब होगा भावाभिव्यक्ति और उसीकी पुष्टिके लिए, और उतनी ही मात्रामें जहाँ तक उससे इसकी सिद्धि होती हो | कुछ विद्वान्‌ इतिहास, मनोविज्ञान आदिपर बल देते हैं किन्तु इति- हासका सम्बन्ध कालविशेषसे है ओर मनोविज्ञानका केवल्सात्र मानसिक गुस्थियोको सुरभानेसे । किन्तु जिस स्थितिम एक साहित्यकार अपने दर्शक अथवा श्रोताको देश-कालकी परिधिसे ऊपर उठा लेता है वहोँ इतिहास




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now