गल्प संसार माला भाग - 3 | Galp Sansaar Mala Part - 3

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Galp Sansaar Mala Part - 3 by नंदगोपाल सेन गुप्त - Nandgopal Sen Guptरवींद्रनाथ ठाकुर - Ravindra Nath Thakurशरणचन्द्र चटोपाध्याय - Sharanchandra Chatopadhyay

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

नंदगोपाल सेन गुप्त - Nandgopal Sen Gupt

No Information available about नंदगोपाल सेन गुप्त - Nandgopal Sen Gupt

Add Infomation AboutNandgopal Sen Gupt

रवीन्द्रनाथ टैगोर - Ravindranath Tagore

No Information available about रवीन्द्रनाथ टैगोर - Ravindranath Tagore

Add Infomation AboutRAVINDRANATH TAGORE

शरणचन्द्र चटोपाध्याय - Sharanchandra Chatopadhyay

No Information available about शरणचन्द्र चटोपाध्याय - Sharanchandra Chatopadhyay

Add Infomation AboutSharanchandra Chatopadhyay

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
[ बंगला खन्‌ १२६८ के २५ वेशाख के दिन जोड़ा साँकूर के ठाकुर परिवार में रवीन्द्रनाथ का जन्म हुआ था। रवीन्द्रनाथ महर्षि देवेन्द्रनाथ के कनिष्ठ पुत्र थे | स्कूलों ओर कॉलिजों में जो पाठ्य क्रम था, उसके फेर में ये नहीं पड़े थे और इन्होंने घर में ही विद्याध्ययन किया था| १७ वर्ष की श्रवस्था में ये सबसे पहले विलायत गये थे । इसके थोड़े ही दिन बाद इन्हें फिर कानून पढ़ने के लिए विल्ञायत जाना पड़ा था। लेकिन कानून की पढ़ाई इनके स्वभाव के अनुरूप नहीं थी। इसलिए ये लौटकर स्वदेश चले आये ओर तब इन्दोंने मन लगाकर साहित्य-सेवा करना आरम्भ किया | ४० वर्ष की श्रवस्था में दी ये अपने समसामयिक कवियों, नास्यकारों, उपन्याकष-ल्षेखकों ओर निबन्ध-लेखकों में उवश्रेष्ठ माने जाने लगे ; यद्यपि उन दिनों के कुछ लेखक इनकी निनन्‍्दा करके दी प्रसन्न होते थे। सन्‌ १६१३ ई० में ये फिर एक बार विलायत गये ये | उश समय इनकी श्रधिकांश बँगला-रचनाश्रों के अगरेजी में अनुवाद हुए ये। इसके फल-स्वरूप इन्हें नोबल-प्राइज प्राप्त हुआ.था और ये श्राधुनिक जगत्‌ के अन्यतम तथा सवश्रेष्ठ लेखक माने गये। इसके उपरान्त इन्होंने पृथ्वी के प्रायः सभी सम्य देशों में श्रमण किया था ; ओर उस समय इनकी मनीषा, पांडित्य, प्रतिभा ओर सबसे बढ़कर इनके सोन्द्य तथा खदाचार ने सभी विश्ववासियों को मुग्ध कर लिया था। इन्होंने तपोवन के आदश पर सरक्ञष ओर आडम्बर-रहित जीवन-निर्वाह और शिक्षा- दान के उद्देश्य से 'शान्ति-निकेतन” नामक आश्रम स्थापित किया था | वह्दी अब विश्व-भारती या सावभीम जश्ञान-निकेतन के रूप में परिवत्तित दो गया है । रवीन्द्रनाथ की मूृस्यु उनके -पूवनों के निवाष-स्थान कलक मेँ ७ श्रगस्त १६४१ को हई । इसमे सन्देह नहीं कि इनकी लिखी हुई उक्त कहानी इनकी प्रतिभा की , एक उल्लेख-योग्य शाखा है | लेकिन इस शाखा का उन्होंने बराबर श्रनुशी- लन नहीं किया है। एक बार मध्य वयत्त में जमींदारी की देख-रेख के प्रसंग में इन्हें पद्मा नदी के किनारे कुछ दिनों तक रहना पड़ा था | उस समय :




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now