एक युग : एक प्रतीक | Ek Yug : Ek Prateek

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Ek Yug : Ek Prateek by देवेंद्र सत्यार्थी - Devendra Satyarthi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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‡ ९५; अनेक कल्ा-वस्तुओं को देखने के लिए मेंने परिश्रम किया है, अनेक कलाकारों के साथ मेरा सम्पर्क रहा है; इसीसे मुझे इस सम्बन्ध में कुछ कहने का साहस हुआ | £ ক भूर ৮২ तीन पुस्तकें! शीषक आलोचना की आधारभूत सामग्री तीन लोकगीत सम्बन्धी पुस्तकें हैं, जिनका में हिन्दी-साहित्य में बहुत बड़ा स्थान मानता हूँ । कुह निबन्धो मे भारतीय स्वतन्त्रता के प्रति आस्था प्रकट की गई है। मारत का भविष्य उज्ज्वल है--यह्‌ मेरा विश्वास ह। बन्धुवर आचांये हजारीग्रसाद द्विवेदी के एक साहित्यिक पत्र का आमुख के रूप में प्रयोग किया गया है। इसके लिए में द्विवेदीजी का ऋणी हूँ । श्रीपुरुषोत्तमदास टण्डन के कर-कमलों में 'एक युग: एक प्रतीक” को समर्पित करते हुए मुझे विशेष हे हो रहा है, क्‍योंकि राष्ट्रभाषा के समर्थक के रूप में ही नहीं--हिन्दी साहित्य के अग्रगामी शक्ति-दूत के रूप में भी उनका स्थान चिर-वन्दनीय 'रहेगा। १००, बेयडं रोड, --देवेन्द्र सत्यार्थी नईं दिल्ली, २४५ अक्तूबर, १६४८




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