सती सावित्री | Sati Savitri
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
150
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about हरिप्रसाद द्विवेदी - Hariprasad Dwivedi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१० सती सावित्री
ब्रद्माजी ने कहा--“द्वतो, हेर-फेर हों सकता है; पर उस-
के करने को साधना भी अच्छी होना चाहिए ।” यह उत्तर
सुनते ही सब देवता बड़े आश्चय में पड़े। वे बोले---““भगवन,
यह बात आंपने हम लोगों से अभी तक नहीं कही थी | एकद्म
आंपके मुँह से इस प्रकोर की बातें सुनते हुए हम लोग तो बड़े
आश्चय में पड़े हुए हैँ ।› जह्माजी ने कहा-- “यह बात सत्य
है कि मेंने तुम लोगों को नहीं बताया है। यह तुमने पहले ही
पहल सुना है, इससे तो तुम लोगों को आश्चयं अवश्य ही
होगा । यह नियम है कि जिस मनुष्य ने कोई बात न सुनी हो,
ओर वह् उसे किसी श्रेष्ठ के मुँह से सुने, तो उसे आंश्चय
अवश्य हो । अब तुम लोग अपने-अपने घर को प्रसन्नतापूवक
जाओ । अश्वपति तुम्हारा अधिकार पाने को तपस्या नहीं कर
रहा है । उसे तो सबसे अधिक चिंतां एक पुत्र का मुँह देखने
की हो रही है । तुम लोग बिलकुल चिंता न करो । मेरी कद्दी
हृदे बात का तुम लोगों को विश्वास नहीं है, इस कारण में
ऐसी व्यवस्था करता हूँ, जिससे यह सिद्धांत भी तुम्हारी समझ
में आ जाय ।”
इतना सुनते ही सभा भंग दहो गड । देवगण त्रह्माजी को
प्रणाम कर अपने-अपने घरों को चले गए। देवतों के चले
जाने पर ब्रह्माजी ने अपनी प्यारी पुत्री सावित्री को बुलाया ।
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