सती सावित्री | Sati Savitri

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sati Savitri by हरिप्रसाद द्विवेदी - Hariprasad Dwivedi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about हरिप्रसाद द्विवेदी - Hariprasad Dwivedi

Add Infomation AboutHariprasad Dwivedi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
१० सती सावित्री ब्रद्माजी ने कहा--“द्वतो, हेर-फेर हों सकता है; पर उस- के करने को साधना भी अच्छी होना चाहिए ।” यह उत्तर सुनते ही सब देवता बड़े आश्चय में पड़े। वे बोले---““भगवन, यह बात आंपने हम लोगों से अभी तक नहीं कही थी | एकद्म आंपके मुँह से इस प्रकोर की बातें सुनते हुए हम लोग तो बड़े आश्चय में पड़े हुए हैँ ।› जह्माजी ने कहा-- “यह बात सत्य है कि मेंने तुम लोगों को नहीं बताया है। यह तुमने पहले ही पहल सुना है, इससे तो तुम लोगों को आश्चयं अवश्य ही होगा । यह नियम है कि जिस मनुष्य ने कोई बात न सुनी हो, ओर वह्‌ उसे किसी श्रेष्ठ के मुँह से सुने, तो उसे आंश्चय अवश्य हो । अब तुम लोग अपने-अपने घर को प्रसन्नतापूवक जाओ । अश्वपति तुम्हारा अधिकार पाने को तपस्या नहीं कर रहा है । उसे तो सबसे अधिक चिंतां एक पुत्र का मुँह देखने की हो रही है । तुम लोग बिलकुल चिंता न करो । मेरी कद्दी हृदे बात का तुम लोगों को विश्वास नहीं है, इस कारण में ऐसी व्यवस्था करता हूँ, जिससे यह सिद्धांत भी तुम्हारी समझ में आ जाय ।” इतना सुनते ही सभा भंग दहो गड । देवगण त्रह्माजी को प्रणाम कर अपने-अपने घरों को चले गए। देवतों के चले जाने पर ब्रह्माजी ने अपनी प्यारी पुत्री सावित्री को बुलाया ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now