साधन - चन्द्रिका | Sadhan Chandrika

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Sadhan Chandrika by स्वामी दयानन्द -Swami Dayanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ | साधन-चन्द्रिका পি পরবাস ७.6 कमा. জো এত ৯ লাস ভাল ওলা ০০০ २१९. 1. 0 পিওর রি अर, प भि म त थ, क ५ आहत, সি পরি স্টার বিলাল শিপ कन मम শষ विचारसे जीव वैषयिक सुखकी ओरसे चित्तको हटाकर भगवत्सा- न्रिध्य प्राप्तिके लिये जो कुछ पुरुषार्थ करता है उसीका नाम डपाखना हे! छान्दोग्योपनिषटुमे इस विषय पर एक सन्दर मन्त हे । यथाः-- स॒ यथा शकुनिः सूत्रेण पबद्धो दिशं दिशं पतित्वाऽन्य- जायतनमलब्ध्वा बन्धनमेवोपश्रयत एवमेव खलु सौम्य तन्मनो दिशं दिशं पतित्वाऽन्य्ाऽप्यतनमलन्ध्वा भाणभेवोपश्नयते प्राणवन्धनं हि सौम्य मन इति । जिस प्रकार व्याधके हाथमे सूतके द्वारा बंधा हुआ पत्ती इधर उधर जड़जानेके लिये चेश करने पर भो -जब शअ्रसमर्थ होजाता है ता बन्धन झे स्थानमें ही आकर बेट जाता है, उसी पकार जीव मायाके द्वारा रचे हुए भ्रमजालमे फंसकर श्रन्तरात्माके साथ जो प्रेमकी डोरी बँधी हुई है उसको तोड़नेके (लये प्रयत्न करता है, परन्तु जब समस्त ईन्द्रियोके विषयमे अन्वेषण करने पर भो उसे कहीं शान्ति प्राप्त नदीं होती है, तो अन्तम समस्त प्रेम और आपनन्‍्दके सूल परमात्माकी ही शरणमे जाकर उपासनाके द्वारा शान्ति प्राप्त करता है। अब नीचे इसी उपासना या साधनाका संक्षिप्त विज्ञान कहा जाता है। . खसनातनधमऊे सिद्धान्तानुसार परमात्माके तीन स्वरूप वर्णन किये गये हैं । यथाः--त्रद्म, ईश और विरादू। श्रतिमें लिखा है किः- स।ऽयमात्मा चतुष्पात्‌ पादोऽस्य सवेभूतानि त्रिपाद ध्याभ्रतं दिवि। परमात्माके चार पाद्‌ है, उनमेसे एक पादम खष्टि होती है और तीन पाद्‌ खृष्टिसे वाहर हैं। परमात्माके जिस भावमें सृष्टि नहीं है, जिसके साथ भायाका कोई सम्बन्ध नहीं है, एवं जो भाव माया- से अतीत अव्यक्त और अरवाङ्मनखगोचर है, उसको ब्रह्मभाव या निगुण ब्रह्म कंह। जाता है।




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