किन्नर देशमें | Kinnar Deshamen

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Kinnar Deshamen by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankratyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रवेशक न योग्य बहिन तथा हिन्दीकी उदीयमान लेखिका कुमारी रजनी नायरका कृतश होना है बल्कि उन्होंने श्रागेकी यात्राके लिये परिचय श्रौर पत्र प्राप्त करनेमें बड़ी सहायताकी । ्रौर दूसरे व्यक्ति जिनका मुझे कृतश होना चाहिए वह हैं श्री एन ० सी ० मेहता जिनकी कृपाका पात्र सुके यहाँ पद्दली बार नहीं बनना था मेरी तिब्बतकी यात्राओ्ं से भी उनकी दिलचस्पी रही । श्रबकी तो में उन्हींके शासित हिमाचलप्रदेशम जा रदा था | उन्होंने मेरी यात्राको सुकर बनानेका प्रयत्न किया किन्तु सुखमय बनाने के लिये तो ्रभी और भारी श्रम श्रोर समयकी श्ावश्यकता है । बैसे शिमलामें नारकंडा तक मोठटरबम और फिर ठाणेदार- कोदगढतक लारी चली आ्रातो है किन्तु इसी समय शिमले मं पैट्रोलकी कभी हो गई श्रोर नारकंध्से श्रागे पैदल चलना छोड़ दूसरा चारा नहीं रहा । पदाड़ोंमें प्राय सभी जगह जहाँ बस लारी नहीं मिलती सामान लेकर चलने वाले श्रादमीके लिये कठिनाई ही आती है। २९ साल पहिले जब में पश्चिमी तिव्बतसे इसी रास्ते लौट रहा था. तो नीचे नौला गाँवमें तौन दिन बैठा रहना पढ़ें । उस शत- वार संशप्त गाँवमें न रहनेका ठोर मिल रहा था न भार ढोकर ३ मील ऊपर पहुँचानेकेलिए श्रादमी । श्रबकी बार नारकंडेमें रहने- को डाकबंगला तो मौजूद था लेकिन ठददरनेकी नौबत नहीं श्राई । रामपुर हाईस्कूलके देडमास्टर पंडित दौलतराम साथ थे उन्होंने सामान केलिए खन्चर ढूंढ निकाला ।. यद्यपि पिछले सितम्बरसे मेले न दिलने-डोलनेकी कसम-सी खाकर जीवनकों डायबीटिसके हाथतक सौंप दिया तो भी ठाणेदारतक पैदल चलनेके लिए. तैयार हो गया । डायबिट्सकों मैंने नि्मन्त्रति किया यह श्रवशिष्ट जीवनमें बहुत बार कदनेका विषय है श्रौर में कहूँगा भी । यदि किसीने सचमुच उसके बारेमें पहिले हृदयंगत करा दिया होता तो मेरे जैसे कितने ही बच जाते । यह्दी तो हृदयंगत कराना था कि पर्याप्त भोजन पाने वाले श्रादमीको कुछ शारीरिक श्रम चाहे चलने-फिरनेके रूपमें ही




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