चिरकुमार-सभा | Chirkumar - Sabha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
224
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रवीन्द्रनाथ टैगोर - Ravindranath Tagore
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२ चिरकुमार-सभा |
बिंधवा सास उन्हें अनाथ दुटुम्बके अभिभावक तथा संरक्षक समझती
है। जाड़ोंके महीने उन्होंने सासके आम्रहसे कलकत्तेमें अपने ससुराल्में
डी निताये ¡ उनके वरह रहनेपर साटी-समितिमे धरम मच गई ।
कलकत्तेमें उनके निवासके अवसरपर एक बार जी पुरबाखके साथ
अक्षयकुमारकी ये बातें हुई:---
पुर्बाछा---अगर तुम्हारी अपनी बहनें होती, तो में भी देखती कि
तुम कैसे चुप रहते ! आज तक एक एकके तीन तीन चार चार वर
खोज छाये होते ! वे मेरी बहनें हैं, इसीलिये---
अक्षय--मानव-चरित्रके सम्बन्धमें तुमसे कोई बात छिपी नहीं है।
अपनी बहन और ज्जीकी बहनमें कितना प्रमेद है, यद्द बात तुमने
इसी छोटी अवस्थामें ही माछ्म कर ली है। कुछ भी हो, ससुरजीकी किसी
भी छड़कीको दूसरेके हाथ सौंपनेकी जी नहीं चाहता--इस सम्बन्धमें
मुझमें उदारताकी कमी है, यह बात माननी ही पड़ेगी ।
पुरबाखने सामान्य करोधकां भाव दिखलाकर गम्भीर होकर कंदा--
देखो, तुम्हारे साथ मुझे एक समझौता करना है ।
अक्षय---एक चिरस्यायी समन्नौता तो मन्त्रके द्वारा ॒विवाहके दिन
ही हो चुका है, फिर क्या एक दूसरा करना होगा !---
पुरबाला---पह उतना भयानक नहीं है । यह शायद उतना असह्म
भी नहीं होगा ।
भ्क्षयने रासवा्ोका-सा हाव-भाव प्रकट करके कहदा--सखी, अगर
ऐसा है, तो जी खोलकर कहो | और फिर गाना झुरू कर दिया---
User Reviews
No Reviews | Add Yours...